एक बेटी का ख़त अपनी माँ के नाम ,उनकी आंठ्वी बरसी पर
मम्मी... 15 जुलाई 2006 को, आज के ही दिन शाम साढ़े पांच बजे आप हम सब को छोड़ कर चली गयी थी। आज आपकी बहुत याद आ रही है सोंच रही हूं ... कुछ लिखू, लेकिन क्या लिखू आपकी शख्सियत के बारे में , शान और तारीफ़ में ......जो कुछ भी लिखूगी वो कम होगा .आप 2002 से कैंसर की तकलीफ से बड़ी बहादुरी और हिम्मत से जूझ रही थी ...हम लोगो पर अपना दर्द बिना ज़ाहिर किये हुए .... लेकिन ये मत समझिये ...की हमें आपकी तकलीफ का अहसास नहीं था डैडी , मैं , रूफ़ी , गुड़िया , शैली , हम सब पूरी तरह बा ख़बर थे ... आपके दर्द और बेचैनी से .
पिछले दो - तीन सालों से जून - जुलाई का महीना आप के लिए बहुत तकलीफदे हो जाता था . मुझे आज भी वो दिन याद है जब 27 जून 2004 को आपको तबियत बहुत खराब हो गयी थी .... आपको इतनी खाँसी हो रही थी की साँस लेना भी मुश्किल था . डैडी आपको डॉ अजय खन्ना को दिखाने ले गए थे जिन्होंने आपको फ़ौरन दिल्ली के राजीव गांधी कैंसर हॉस्पिटल में ले जाने की सलाह दी थी क्योंकि वहीं से आपका इलाज चल रहा था .
हम अगले ही दिन यानी 28 जून 2004 को आपको इंटरसिटी एक्सप्रेस से सुबह 5 बजे दिल्ली लेकर आने वाले थे ... मैं और शैली को तो रूफ़ी ने बाइक से स्टेशन पर पंहुचा दिया था और डैडी आपको अहिस्ता- अहिस्ता दूसरी बाइक से लेकर स्टेशन आ रहे थे . हम लोग ट्रेन पर चढ़ गए थे ... और कम्पार्टमेंट के दरवाज़े पर खड़े हो कर आपका इन्तिज़ार कर रहे थे ...आप और डैडी हमें रेलवे प्लेट फॉर्म पर कही दिखाई नहीं दिए .... इतने में ट्रेन रेंगने लगी ... और फिर धीरे धीरे ट्रेन ने स्पीड पकड़ ली . हम दोनों भाई - बहन बेचैनी से डैडी के मोबाइल फ़ोन पर कांटेक्ट करने की कोशिश करने लगे .... लेकिन उसके सिग्नल ग़ायब हो जाने की वजह से डैडी से हमारा कोई कांटेक्ट नहीं हो पाया .इसी कशमाकश में रामपुर का स्टेशन आ गया . उस वक़्त किसी अनहोनी के डर से हम लोगों का दिल कांप रहा था। हम लोगों की परेशानी उस वक़्त और बढ़ गई जब हमें रुफी ने फ़ोन पर बताया की "वो भी स्टेशन पर मम्मी- डैडी को ढूँढ रहा है ... उसे भी मम्मी -डैडी कही दिखाई नहीं दे रहे हैं ".
हमने राहत की सांस उस वक़्त ली जब डैडी का ख़ैरियत का फ़ोन आया .... उन्होंने बताया की जब वो आप को लेकर प्लेटफार्म -3 पर आने के लिए पुल पर चढ़ रहे थे , तभी आपकी साँस उखड़ने लगी थी .... ऐसा लग रहा था की आपको उसी वक़्त कुछ हो न जाए। .... इसलिए डैडी ने आप को वही बैठा दिया और ट्रेन सामने से निकाल गयी .
मम्मी ...."डैडी पर वो वक़्त कैसा क़यामत की तरह गुज़रा होगा है - न।"
शैली रामपुर से आपको अगले दिन दिल्ली लाने के लिए लौट गया और मैं दिल पर बोझ लिए दिल्ली चली गयी। 29 जून 2004 को आप शैली से साथ आने वाली थी ... मैंने अपने छोटे से फ्लैट को आप के लिए तैयार कर दिया था ..... मेरी वो रात बड़ी बेचैनी से कटी थी ... एक अजीब सा डर लग रहा था मुझे , ख़ैर किसी तरह रात कटी .... सुबह दस बजे आपकी ट्रेन आने वाली थी .इस लिए मैंने सुबह जल्दी - जल्दी घर का काम ख़त्म किया ... और आपको स्टेशन पर receive करने निकल गयी आपको surprise देना चाहती थी मैं . ... जब मैं नई दिल्ली स्टेशन पर पहुंची तो पता चला की ट्रेन आ चुकी है .... मुझे वक़्त पर पहुचने में देर हो चुकी थी .... खैर मैं भागती - दौड़ती उस प्लेट फॉर्म पर पहुंच गयी जिस पर आपकी ट्रेन आयी थी . रास्ते में शैली मिल गया उसने बताया की " अप्पी तुम मम्मी के पास जाओ . मम्मी आगे वाली सीट पर बैठी हैं। मैं व्हील चेयर लेने जा रहा हूँ ....."
मेरी नज़रे चलते -चलते आप के प्यारे चेहरे को ढूंढ रही थी अचानक मेरी नज़र आप पर पड़ी , .आप पिंक कलर की साड़ी पहने हुए सीट पर बैठी हुई थीं । मम्मी, आप इतनी तबियत ख़राब में भी बेहद ख़ूबसूरत लग रही थी . जैसे ही आपने मुझे देखा और मैं आपके पास गयी .. आप मुझसे चिपट कर रोने लगीं एक मासूम बच्चे की तरह. ... मैंने आप को कस के अपनी बाहों में समेट लिया था , दिल चाह रहा था की क्या कर दूं। .. आप की तकलीफ़ दूर करने के लियें . वो वक़्त ... वो लम्हे तो नक्श हैं मेरे दिल पर।
मैं जानती थी की .. सुबह - सुबह आते वक़्त आपसे कुछ खाया नहीं गया होगा . जब मैंने आपसे पूछा ... "मम्मी आप कुछ खायेंगी तो आपने हाँ में सर हिल दिया था ... एक मासूम बच्चे की तरह ...".मैंने जल्दी से आपके लिए एक चिप्स का पैकेट और कोल्ड ड्रिंक खरीदा , और आपके पास बैठ कर आपको खिलाने लगी ....आप आहिस्ता -अहिस्ता खाने की कोशिश कर रही थी आपको, खाते देख कर बहुत तसल्ली मिल रही थी .
शैली बिना व्हीलचेयर के वापस आ गया .... उसने बताया कोई भी क़ुली हमारे प्लेट फॉर्म नंबर -5 तक व्हील चेयर लाने को तैयार नहीं हो रहा था . अब मुश्किल ये थी की आपको इतना लम्बा रास्ता कैसे तय करवाया जाए क्योकि कई प्लेट फॉर्म के पुलों को क्रॉस करना था .... एक और कोशिश करने के इरादे से मैंने शैली से कहा की ....
"अब तुम मम्मी के पास बैठो ... मैं भी कोशिश कर के देख लेती हूँ ".
शुरू में मुझे भी कोई क़ुली नहीं मिला .... और जो मिले वो इतनी दूर हमारे प्लेटफॉर्म तक आने को राज़ी नहीं हो रहे थे ....फिर वहाँ मैंने तैनात पुलिस की मदद ली और उन्हें सारी बात बताई .... उन्होंने मेरी मदद की और उस रूम में भेजा जहां व्हीलचेयर मिलती है . मैंने वहाँ पहुच कर authorities से ना सिर्फ शिकायत की बल्कि उनके खराब इन्तिज़ाम के लिए उन्हें खूब बातें भी सुनाई। उन्होने बिना देर किये हुए व्हील चेयर मुहैया करवा दी .
ये सब इंतजाम करते -करते मुझे काफी देर हो गयी थी .जल्दी -जल्दी क़ुली के साथ व्हील चेयर लेकर आपके पास पहुची और हम लोग आपको व्हील चेयर पर बैठा कर स्टेशन के बाहर ले आये . और वहाँ से सीधे आपको राजीव गाँधी कैंसर हॉस्पिटल ले गए .
उन दिन हम लोगो को इम्तिहान पर इम्तिहान देना था ,आपकी तबियत बिगड़ रही थी और आपकी डॉक्टर, डॉ कटारिया छुट्टी पर थी इसलिए दूसरे डॉक्टर ने आपको देखा था . .... इस डॉक्टर का नाम तो मुझे याद नहीं लेकिन उसका चेहरा मुझे आज 8 साल के बाद भी याद है बहुत insensitive था वो डॉक्टर और बहुत rudely behave कर रहा था ऐसा लग रहा था की जैसे उसे मरीज़ की तकलीफ़ का ज़रा भी अहसास नहीं . हम लोग मम्मी की तकलीफ बयान करने के लिए बेताब थे ... और वो डॉक्टर हमें अपनी बात भी नहीं कहने दे रहा था .... और बार - बार one by one , one by one कह के रोक देता था .
इस डॉक्टर ने आपके कुछ टेस्ट करवाए थे जिसकी रिपोर्ट हमें कुछ ही देर में मिल गयी . इस डॉक्टर ने रिपोर्ट देखते ही बड़े ठंडे लहजे में कहा ..."की अब पेशेंट में कुछ नहीं बचा है ... ज्यादा से ज्यादा तीन महीने की जिंदिगी और है।"
ये सुन कर हम दोनों भाई - बहन के तो होश ही उड़ गए। जो डॉक्टर ने कहा उसका हमें ज़रा भी गुमान नहीं था. मम्मी .... हम आपको किसी भी क़ीमत पर खोने को तैयार नहीं थे . मेरा दर्द तो आंसू बन कर छलक गया था आँखों से ... लेकिन आपके शैल ने अपने ज़ज्बात को फिर भी काबू में रखा . उसने बस इतना ही कहा की ...
"अप्पी मुझे ऐसा लग रहा है की जैसे आस पास खड़े लोग slow motion में हो गए है .... दिल सा बैठ गया था उसका ."
आप के सामने हम रो नहीं सकते थे ...और आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे . ख़ैर किसी तरह हम आपको घर ले आये . अपना फ्लैट 11nd floor पर था और आप इतनी सीढ़ियाँ चढ़ नहीं सकती थी,उस वक़्त आपके बेटे शैली ने बड़े प्यार से आप को गोद में उठाया और घर में ले जाकर बिस्तर पर लिटा दिया . उस वक़्त हम दोनों बहुत रोना चाहते थे ... लेकिन आप के सामने नहीं , मैं घर का कोई कोना तलाशती रोने के लिए और शैली घर से बाहर जाता ..... रोकर अपना दिल हल्का करने के लिए . वो मेरे सामने भी नहीं रोना चाहता था
उन दिनों आप को खांसी का ज़बरदस्त अटैक सा होता था जिसे सुन कर हम लोगो का दिल दहल जाता था . Lungs में पानी भर जाने की वजह से आपका दो क़दम भी चलना दुश्वार था ,आपकी सांस चलने लगती थी उस वक़्त मैं और शैली एक - दुसरे को बड़ी बेबसी से देखते ऐसा
लगता की हर खांसी के अटैक के साथ मम्मी मौत के एक क़दम और नजदीक आती जा रहीं है .शैली बेचैन होकर मुझ से कहता ..."अप्पी ... ख़ुदा से दुआ मांगो. शायद हमारी मम्मी को दुआएं लग जाएँ और वो ठीक हो जायें".
जुलाई की सख्त गर्मी आपको और ज्यादा परेशान कर रही थी ऊपर से आप कुछ खा भी नहीं पा रही थी ... सिर्फ एक चीज़ के अलावा ....वो था कस्टर्ड वनिला फ्लेवर . एक यही चीज़ आप ख़ुशी से खा पा रही थी . मैं रोज़ आप के लिए खूब सारा कस्टर्ड बना देती, मुझे कम से कम इस बात का सुकून तो था की आप कुछ तो खा पा रहीं हैं .
यूं तो डॉक्टर ने आपकी जिंदिगी सिर्फ 3 महीने बताई थी , लेकिन कुछ दूसरे टेस्ट करवाने के लिए भी कहा था ...क्योंकि सही हालात का पता इन सारी टेस्ट रिपोर्ट आने के बाद ही चलता . इसी वजह से हमारे लिए अभी एक उम्मीद की किरन बाक़ी थी . हमें आपकी फाइनल रिपोर्ट का इन्तिज़ार था इसलिए हमने अभी तक डैडी को कुछ नहीं बताया था .वो हमसे बार - बार पूछते और हम यही कहते , की ... मम्मी ठीक है . लेकिन वो आखिर हमारे डैडी है और
हम हैं उन के बच्चे ... कही न कही उन्हें थोडा सा शक सा था ... की कोई सीरियस बात है .
रूफ़ी को हमने सारी बात बता दी थी वो अगले ही दिन आ गया था , अब मैं अकेली नहीं थी मेरे दोनों भाई मेरे साथ थे . उसके आते ही मुझे और शैली को बड़ी राहत और सुकून मिला। फाइनल रिपोर्ट्स रुफी ने अपने हाथ से ली ... बड़े भरी दिल से .... जब वो रिपोर्ट ले रह था तब उसके हाथ काँप रहे थे सारी रिपोर्ट्स एक ही बात कह रही थी ...की आप का साथ हमसे छूटने वाला है अब ज्यादा दिनों तक आप हमारे साथ नहीं रहेंगी . अब डैडी से और नहीं छुपाया जा सकता था ... इसलिए उन्हें सारी बात बता दी गयी . जिस पर डैडी ने रूंधे गले से बस इतना ही कहा .... की "तुम लोग डॉक्टर से मम्मी का सारा मेडिकेशन प्लान करवा लो और उन्हें घर ले आओ ... अब तुम्हारी मम्मी को मैं अपने पास ही रखूँगा ... और उनका सारा ट्रीट मेंट यही से होगा ."
हम आप को लेकर सुबह तीन बजे घर पहुचे होंगे, डैडी जाग रहे थे ... उन्होंने जल्दी से गेट खोला और आपको बड़े प्यार से सहारा देकर अपने बेड रूम तक पहुचाया ... डैडी के पास आकर आप बहुत ख़ुश थी और आप की तबियत भी पहले से ज्यादा बेहतर लग रही थी ..
अगले दिन उम्मीद की एक नई सुबह थी .... हम सब के लियें ...जिसमे डैडी ने आप से ये वायदा लिया की आप को जीना है उन के लिए ...और हम सब बच्चों के लियें ... डैडी की बातो से आपको बहुत motivation मिला , उनकी बातों ने पता नहीं आप पर क्या जादू किया की आप कुछ देर के लिए अपना सारा दर्द और तकलीफ भूल गयी। आपने हाथ उठा जोश से कहा ..." हाँ मुझे जिंदा रहना है ... मैं जिऊंगी ... तुम्हारे लिए और अपने बच्चों के लियें "
एक बार फिर आपको बचाने के लिए हर मुमकिन कोशिश की जाने लगी ....एक बार फिर कैंसर से लड़ने और जीने के लिए कमर कस के आप तैयार हो गयीं थी . दवा और दुआ दोनों ने मिल कर काम किया . आपकी तबियत
धीरे- धीरे सभालने लगी .राजीव गाँधी हॉस्पिटल के medication प्लान के मुताबिक आपका ट्रीटमेंट तो हो ही रहा था। ज़का मामू ने लखनऊ से मशहूर होम्योपैथिक डॉक्टर डॉ बत्रा का ट्रीटमेंट भी शुरू करवाया। बत्रा क्लिनिक से आपके लिए फ़ोन आता , डॉक्टर आपसे बड़ी तसल्ली से लम्बी बात करती .... और मर्ज़ को समझती .... फिर courier से आपकी होम्योपैथिक दवाएं भेज देतीं . आप उन्हें टाइम पर लेती रहती .
मम्मी ... मुझे लगता है की आपको डॉक्टर बत्रा की होम्योपैथिक दवाओ ने बहुत फायदा किया , कुछ की दिनों में आपकी खांसी तो जैसे गायब हो गयी। Time to Time आपके टेस्ट होते ... और आपकी सारी रिपोर्ट्स ठीक आती . ऐसा लगता था की कोई चमत्कार हुआ है और घर की खुशियाँ वापस आ गयीं हैं .
डॉक्टर ने कहां आपकी जिंदिगी सिर्फ 3 महीने बताई थी लेकिन उसके बाद आप तीन साल और हमारे साथ रहीं ...और एक सेहत मंद जिंदिगी जी . अपने हाथो से 2 दिसंबर 2004 को मेरी शादी की , सब कुछ अपने हाथो से किया , यहाँ तक की सूजी और कटे मेवे से तैयार होने वाली पीडीयां भी किसी और से न बनवा कर अपने हाथों से बनायीं और सारी रस्मे बड़ी ख़ुशी - ख़ुशी अदा की।
मम्मी आज आप physically हमारे साथ नहीं है ... लेकिन हर लम्हा हर सांस में आप हैं और हमेशा रहेंगी
आपकी बेटी रेनी
(अरशिया ज़ैदी)