27 Dec 2017

हाय !!! ये व्हाट्स ऐप यूनिवर्सिटी के मैसेज





अब चंद दिन ही बचे हैं नया साल आने में और व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी लोगों को जगाने में लग  गई है पिछले हफ़्ते  मेरे पास व्हाट्सऐप  यूनिवर्सिटी का एक मैसेज आया  जिसका टाइटल था। ... कैलेंडर बदलिए.. अपनी संस्कृति नहीं। जिसमे  उन्होंने बड़ी तफ्सील से वजह  बताई की .... क्यों  हमें  नया साल पहली जनवरी को नहीं मानना चाहिए। .....

हैरानी हुई, ग़ुस्सा आया और फिर तरस आया इन लोगों की तंग दिली पर. कहाँ  पूरी दुनिया  सिमट  कर एक छोटा सा गॉव  बन गई है। अंतरराष्ट्रीय भाईचारे की बात की जाती है उस पर ये  तंग नज़रिया !!! इस तरह के मैसेज  भेज कर क्या साबित करने की कोशिश  की जा रही है और  इससे हमारी संस्कृति पर  कौन  सा दाग लग रहा है? हमारे देश की  शानदार संस्कृति  की जड़ें  बहुत गहरी हैं और इस पर कभी कोई आंच  नहीं आ सकती।हम सब का दिल हमेशा हिन्दुस्तानी रहेगा। 

नया साल  भारतीय संवत  के हिसाब से  मनाएं  या अंग्रेजी केलिन्डर के हिसाब से। .  किसी ने रोका है क्या??? सबको अपनी -अपनी पसंद से नया साल मनाने दीजिये। आजकल सब समझदार हैं और सबको पता है कि  किसको कब क्या करना है.

मेरा तो मानना है कि इसी बहाने हमें ख़ुशी मनाने  का मौक़ा मिलता है  पूरी दुनिया में सब लोग  एक -दूसरों के लिए अमन-चैन ,सुकून और खुशहाली की दुआ करने का वक़्त निकालते हैं। मोहब्बतें तो कभी भी बांटी  जा सकती है. मोहब्बत और दुआ का कोई खास वक़्त  मुक़र्रर नहीं होता।
कोई इन जागने और जगाने वाले सो कॉल्ड संस्कृति के  ठेकेदारों से कह दे। ....कि  भाई साहब हमें अकेला  छोड़ दो। ...और अपनी मर्ज़ी  से, अपनी पसंद से ख़ुशी का इज़हार करने दो.

अर्शिया ज़ैदी






















26 Oct 2016

Aye Dil Hai Mushkil Ki "Mushkil"


                                   ए  दिल  है मुशकिल की "मुश्किल"


मुझे आने वाले जुमे का बेसब्री से इन्तिज़ार है क्योकि  मुझे करन जौहर  की फिल्म "ए दिल है मुश्किल "देखनी है जो आज कल बड़ी मुश्किल में  पड़ गई है  फिल्म के प्रोमोज देख  कर तो लगता है कि फिल्म दिलचस्प  होगी और उसका  एक गाना...." मेरी   रुह  का  परिंदा  फड़फड़ाये, लेकिन  सुकून का जज़ीरा मिल न पाये ....  मुझे बहुत ज़्यादा पसंद है

इतना हंगामा बरपा हो  चुका है  इस फिल्म को लेकर, जिसका कोई भी लॉजिकल रीज़न नज़र नहीं आता   अरे कौन सी क़यामत आ गई  अगर फिल्म मे पाकिस्तानी एक्टर हैं. जिस वक़्त ये फिल्म बन रही थी तो पाकिस्तान  के साथ हमारे  रिश्ते ठीक थे। हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र  मोदी जी पाकिस्तान गए थे, नवाज़ शरीफ साहब की  माँ को एक साड़ी भी तोफहे में दी थी " तो क्या अब वो साड़ी भी उनकी  माँ से वापस मंगवा  ली जाये "?


इसी बारे में  फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप  का वो टवीट भी मुझे काफी सही लगा था जिसमें उन्होंने प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी से ये सवाल किया था कि " प्रधानमंत्री जी, क्या आप पाकिस्तान दौरे के लिए भी माफ़ी मागेंगे "


उरई  में हमारे जवान  शहीद हुए और  फिर सर्जिकल  स्ट्राइक करके हमने ईट का जवाब पत्थर से दे कर, बदला भी ले लिया, अब और  क्या चाहिए भई!!! अब थोड़ी देश भक्ति शहीदों  के परिवारों  की मदद  करके भी दिखाई  जा सकती है जिससे वो अपनी आगे की ज़िंदगी को अच्छी तरह जी सके। और आपको ढेरों दुआएं दें ।


इतने दिनों  से  सर्जिकल स्ट्राइक की  कामयाबी पर तो रोज़ हमारे मौका परस्त नेता देश भक्ति की  दुहाई देते हुए बात कर रहें हैं लेकिन इस बात की  फ़िक्र हमारे  नेताओ को  ज़रा  भी नहीं है कि देश से  कुपोषण को कैसे ख़त्म किया जाये। दुनिया के 118 देशो में से  97 वीं जगह पर आ गया है हमारा भारत देश ' क्या ये शर्म की बात नहीं है ?


आज करन जौहर को अपनी देश भक्ति का सुबूत य कह कर देना पड़ रहा है कि" वो अपने देश से प्यार करते हैं और देश भक्त हैं। " जो एक ख़ास नज़रिये की हिमायत न करे वो देशद्रोही है, उसे अपने देश से प्यार नहीं है अपनी देश भक्ति साबित करने के लिए उसे सफ़ाई  देनी पड़ती है ,ये क्या बात हुई भला !!!! बन्दूक की नोक पर किसी की देश भक्ति का इम्तिहान नहीं लिया जा सकता इसे तो सिर्फ़ गुंडागर्दी या दादागीरी ही कहा जा सकता है.


हम पाकिस्तान के साथ बड़े पैमाने पर  कारोबार करते है ,आयात -निर्यात  करते  हैं. क्या वो भी  बंद कर देंगे ? हमें ये नहीं  भूलना नहीं  चाहिए कि फिल्म मेकिंग हमारे देश का एक एहम कारोबार है जिससे लाखो लोगो को रोज़गार  मिला हुआ है।" अगर  ए दिल है मुश्किल "फिल्म का लोग सिर्फ इसलिए बहिष्कार करते हैं  क्योंकि उसमें पाकिस्तानी एक्टर हैं या फिर लोग MNS (महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ) की धमकियों और गुंडागर्दी के चलते सिनेमा घरों  तक नहीं पंहुचने की हिम्मत नहीं कर पाते तो इसका सीधा असर  फिल्म के कारोबार पर पड़ेगा, हमारे अपने ही लोगो पर पड़ेगा।


उनकी दिवाली  अँधेरी हो जाएगी। जिन लोगों  ने इस  फिल्म को बनाने में अपना खून पसीना बहाते हुए दिन रात मेहनत की है  वो अपने घर की ज़रूरतों को पूरा नहीं कर पाएंगे  हो  सकता  है कि कुछ लोगो  को अपने बच्चों की पढाई बीच में ही छुड़वाना पड़ जाए।

मेरे ख़याल  से  कोई सच्चा हिन्दुस्तानी और  देश भक्त तो नहीं चाहेगा की किसी हिंदुस्तानी  की दिवाली काली हो। उम्मीद करती हूँ  की  फिल्म चले और खूब अच्छा बिज़नस करे  और सब लोग रौशनी का त्यौहार  दिवाली ख़ुशी ख़ुशी  मनाये


अर्शिया ज़ैदी






27 Jan 2015

Sarhado ko jodne ki ek nai pahel

                       सरहदों को जोड़ने की एक नई  पहल 

"जिंदिगी में ज़्यादा रिश्ते होना ज़रूरी  नहीं है  पर जो रिश्ते हैं  उनमे  जिंदिगी होना  बहुत ज़रूरी हैं " ये टैग लाइन  है  ज़ी  टी वी  के  जिंदिगी चैनल  के फेस बुक  पेज पर . …। " जो  मुझे  इतनी  अच्छी  लगी  की मैंने उसे  अपने  फेस बुक  पेज पर  शेयर   कर लिया  …।  कितनी  गहरी , कितनी ख़ूबसूरत कितनी मायने खेज़  बात  कही गयी है।
 जब  से जिंदिगी  चैनल शुरू  है  तब से एक  मुद्दत  बाद  मैंने टी वी   सीरियल्स  देखना फिर से शुरू किये  हैं   इस चैनल पर दिखाए जा रहे  ज़्यादा तर  पाकिस्तानी  सीरियल मेरे  दिल के बेहद क़रीब हैं। इन्होने  तो हम लोगो  की जिंदिगी में  रंग भर दिए हैं एक से बढ़  कर एक  कहनियाँ और अफ़साने  जिनमे हमें   हक़ीक़त  का  अक्स साफ़  नज़र आता है.  
पाकिस्तानी  टैलेंट जिंदिगी सीरियल्स  के  ज़रिये  आज  घर- घर  में पहुँच  रहा है। चुनिंदा बेहतरीन  कहानियाँ ,लाज़वाब  डायरेक्शन , बेमिसाल  अदाकारी लिए ये पाकिस्तानी सीरियल्स हिंदुस्तान की आवाम  में बहुत मशहूर हो रहे हैं और लोग बड़ी दिलचस्पी  से  इन सीरियल्स  को देख रहे हैं। 
 जिंदिगी  गुलज़ार  है, हमसफ़र , मेरा  क़ातिल मेरा दिलदार , थकन , तेरे इश्क़  में , मात , कही- अनकही , कैसी ये क़यामत , गौहर, पिया रे , इजाज़त और  माया  वगैहरा हिंदुस्तान  की आवाम के दिलों में ख़ास  जगह  बना चुके हैं  और  ख़ास  बात ये है  की हर  सीरियल एक -ड़ेढ़ महीने में ख़त्म हो जाता है।  जिसकी वजह  से ज़रा सी भी बोरियत  नहीं होती। 
 जिंदिगी चैनल  के ज़रिये  उर्दू  जैसी  मीठी  ज़बान  को  समझने  और पसंद  करने वाले  लोगो  को  ज़ी टी वी  ने  अनमोल तोहफा  दिया है आगे आने वाले दिनों में सरहद पार  के  कुछ  और  मुल्को  जैसे  टर्की , ईरान ,  मिस्र ,श्री लंका और बांग्लादेश  से  भी दिल को छु देने  वाले  चुनिंदा  अफसाने  और कहानियाँ  हमें  देखने  को  मिलेंगी  जिनके  ज़रिये  जहां  हमारा तार्रुफ़  अलग -अलग मुल्कों  के  मुख्तलिफ़  रहन - सहन,  और बोलचाल  से होगा  वहीं  हमें इंसानी  ज़ज़्बातो के अलग- अलग रंग भी  देखने को  मिलेंगे जो हमें  ये  अहसास  करायेंगे  की सरहदें  चाहें कितनी अलग क्यों न  हो  लेकिन इंसानी ज़ज़्बातो  एक जैसे  ही  होते  हैं    जो हमें  कहीं न  कहीं  एक दूसरे से जोड़ते   हैं। 
अरशिया  ज़ैदी







15 Jul 2014

Ek beti ka khat apni maa ke naam.... unki aanthvi barsi par.

parents.
 एक  बेटी  का ख़त  अपनी माँ  के  नाम ,उनकी  आंठ्वी  बरसी पर  


मम्मी... 15  जुलाई  2006 को, आज  के ही दिन  शाम साढ़े  पांच  बजे  आप हम सब को छोड़ कर चली  गयी थी। आज आपकी  बहुत  याद आ  रही है सोंच रही हूं ... कुछ लिखू, लेकिन क्या  लिखू  आपकी शख्सियत  के  बारे  में , शान और तारीफ़  में  ......जो  कुछ  भी  लिखूगी   वो कम होगा .आप  2002  से  कैंसर  की तकलीफ से  बड़ी  बहादुरी  और  हिम्मत  से जूझ  रही  थी ...हम लोगो  पर  अपना  दर्द  बिना  ज़ाहिर किये हुए .... लेकिन ये मत समझिये  ...की हमें  आपकी तकलीफ का  अहसास नहीं था डैडी , मैं , रूफ़ी , गुड़िया , शैली , हम  सब  पूरी  तरह  बा ख़बर थे ... आपके  दर्द  और बेचैनी से .

पिछले  दो - तीन  सालों  से  जून - जुलाई  का महीना  आप के  लिए बहुत तकलीफदे  हो जाता था . मुझे  आज भी वो दिन याद है जब  27 जून  2004  को आपको  तबियत  बहुत खराब हो गयी  थी .... आपको  इतनी खाँसी हो रही थी की साँस  लेना  भी  मुश्किल था . डैडी  आपको  डॉ  अजय खन्ना को दिखाने ले गए थे जिन्होंने  आपको फ़ौरन दिल्ली  के राजीव  गांधी कैंसर हॉस्पिटल में  ले जाने की  सलाह  दी थी  क्योंकि   वहीं  से  आपका  इलाज  चल रहा था .

हम अगले  ही दिन यानी  28  जून  2004  को  आपको  इंटरसिटी एक्सप्रेस से  सुबह 5 बजे  दिल्ली लेकर  आने वाले थे ...  मैं  और शैली  को तो  रूफ़ी  ने  बाइक से  स्टेशन  पर पंहुचा  दिया  था और डैडी आपको  अहिस्ता- अहिस्ता  दूसरी  बाइक  से लेकर  स्टेशन आ  रहे  थे . हम  लोग   ट्रेन  पर चढ़ गए थे ... और कम्पार्टमेंट के दरवाज़े  पर खड़े  हो  कर  आपका  इन्तिज़ार कर रहे थे ...आप और  डैडी  हमें  रेलवे प्लेट फॉर्म  पर कही  दिखाई  नहीं   दिए  .... इतने  में  ट्रेन  रेंगने  लगी ... और फिर  धीरे  धीरे  ट्रेन ने  स्पीड पकड़  ली .  हम  दोनों भाई - बहन  बेचैनी  से  डैडी  के  मोबाइल फ़ोन पर  कांटेक्ट करने की कोशिश  करने लगे .... लेकिन   उसके  सिग्नल ग़ायब  हो जाने  की वजह  से डैडी  से हमारा कोई  कांटेक्ट  नहीं  हो पाया .इसी कशमाकश   में  रामपुर का स्टेशन आ गया . उस वक़्त किसी अनहोनी  के डर से  हम लोगों  का  दिल  कांप  रहा  था। हम  लोगों की  परेशानी उस वक़्त और  बढ़  गई  जब   हमें   रुफी   ने  फ़ोन  पर  बताया  की "वो  भी  स्टेशन  पर  मम्मी- डैडी को ढूँढ  रहा है ... उसे  भी मम्मी -डैडी  कही  दिखाई  नहीं  दे  रहे  हैं ".

हमने  राहत  की सांस  उस वक़्त  ली जब  डैडी  का  ख़ैरियत का  फ़ोन आया  .... उन्होंने  बताया की जब वो आप को लेकर प्लेटफार्म -3 पर  आने के  लिए  पुल  पर  चढ़  रहे थे , तभी   आपकी   साँस  उखड़ने  लगी थी .... ऐसा  लग रहा था  की  आपको  उसी  वक़्त कुछ हो न जाए। .... इसलिए  डैडी  ने आप को वही बैठा दिया और ट्रेन  सामने से निकाल गयी .
मम्मी ...."डैडी  पर वो  वक़्त कैसा  क़यामत की तरह गुज़रा होगा  है - न।"  
शैली रामपुर से आपको अगले दिन  दिल्ली लाने के लिए लौट  गया  और मैं  दिल पर  बोझ  लिए दिल्ली  चली गयी। 29  जून 2004 को  आप  शैली  से साथ  आने  वाली थी ...  मैंने  अपने छोटे से फ्लैट को  आप  के लिए  तैयार कर दिया था ..... मेरी वो रात  बड़ी बेचैनी  से कटी थी ... एक अजीब सा डर लग  रहा था मुझे ,  ख़ैर   किसी तरह  रात कटी  .... सुबह  दस  बजे  आपकी  ट्रेन  आने वाली थी .इस लिए  मैंने  सुबह  जल्दी - जल्दी   घर का  काम ख़त्म  किया ...  और  आपको   स्टेशन पर  receive  करने   निकल  गयी  आपको  surprise  देना  चाहती  थी मैं . ... जब मैं नई दिल्ली  स्टेशन पर  पहुंची  तो   पता चला की  ट्रेन  आ चुकी   है  ....  मुझे वक़्त पर पहुचने में  देर हो चुकी थी .... खैर मैं भागती - दौड़ती   उस प्लेट फॉर्म पर  पहुंच  गयी जिस पर  आपकी  ट्रेन आयी  थी . रास्ते  में  शैली  मिल गया   उसने बताया की " अप्पी  तुम  मम्मी के पास जाओ . मम्मी  आगे  वाली सीट  पर बैठी हैं। मैं  व्हील  चेयर  लेने जा रहा  हूँ ....."
मेरी नज़रे  चलते -चलते  आप  के  प्यारे  चेहरे को  ढूंढ  रही थी अचानक  मेरी नज़र  आप पर  पड़ी , .आप पिंक कलर की  साड़ी  पहने   हुए  सीट  पर बैठी हुई थीं । मम्मी,  आप  इतनी तबियत  ख़राब  में भी  बेहद  ख़ूबसूरत  लग रही थी . जैसे ही आपने   मुझे देखा  और  मैं  आपके  पास गयी .. आप मुझसे चिपट  कर रोने लगीं एक  मासूम  बच्चे  की तरह. ... मैंने  आप को  कस  के अपनी  बाहों  में  समेट  लिया था , दिल चाह  रहा  था की  क्या कर   दूं। .. आप  की  तकलीफ़  दूर  करने के लियें . वो वक़्त ... वो लम्हे तो नक्श  हैं  मेरे  दिल पर।

मैं जानती थी की  ..  सुबह - सुबह आते वक़्त  आपसे  कुछ  खाया  नहीं गया  होगा .  जब  मैंने आपसे  पूछा ... "मम्मी आप कुछ  खायेंगी तो आपने  हाँ में सर हिल दिया था ... एक मासूम बच्चे की तरह ...".मैंने जल्दी से आपके  लिए एक चिप्स का पैकेट  और  कोल्ड  ड्रिंक  खरीदा  , और  आपके  पास  बैठ  कर आपको   खिलाने  लगी ....आप आहिस्ता  -अहिस्ता  खाने  की  कोशिश  कर रही  थी   आपको,  खाते  देख कर  बहुत तसल्ली  मिल  रही थी .

शैली बिना व्हीलचेयर  के  वापस आ गया .... उसने बताया कोई भी  क़ुली हमारे प्लेट फॉर्म  नंबर -5  तक  व्हील चेयर लाने  को  तैयार नहीं हो रहा था . अब मुश्किल  ये  थी  की  आपको  इतना लम्बा  रास्ता कैसे  तय  करवाया जाए  क्योकि  कई  प्लेट फॉर्म  के   पुलों  को क्रॉस करना था  ....   एक और कोशिश करने के इरादे से मैंने  शैली  से  कहा की .... 

"अब तुम मम्मी के पास बैठो ...  मैं  भी कोशिश  कर  के  देख  लेती हूँ ".
शुरू  में  मुझे  भी कोई  क़ुली  नहीं  मिला .... और  जो  मिले  वो इतनी  दूर  हमारे प्लेटफॉर्म तक आने को राज़ी नहीं हो रहे थे ....फिर वहाँ  मैंने  तैनात पुलिस  की मदद ली और उन्हें  सारी   बात बताई .... उन्होंने  मेरी  मदद  की  और उस  रूम  में भेजा जहां   व्हीलचेयर मिलती  है . मैंने  वहाँ  पहुच  कर authorities से ना सिर्फ शिकायत की  बल्कि  उनके खराब  इन्तिज़ाम के लिए उन्हें खूब बातें  भी  सुनाई। उन्होने  बिना देर किये  हुए व्हील चेयर  मुहैया  करवा  दी .

ये  सब इंतजाम करते -करते मुझे  काफी देर हो गयी  थी .जल्दी -जल्दी   क़ुली   के साथ व्हील  चेयर   लेकर  आपके  पास   पहुची   और हम  लोग आपको  व्हील  चेयर  पर  बैठा  कर   स्टेशन  के बाहर  ले आये . और वहाँ से  सीधे   आपको  राजीव  गाँधी   कैंसर  हॉस्पिटल  ले गए .

उन  दिन हम लोगो को इम्तिहान पर इम्तिहान देना था ,आपकी  तबियत  बिगड़  रही थी और आपकी डॉक्टर,  डॉ  कटारिया  छुट्टी पर थी  इसलिए दूसरे  डॉक्टर  ने आपको    देखा था . ....  इस  डॉक्टर का  नाम  तो  मुझे  याद नहीं  लेकिन उसका  चेहरा  मुझे  आज  8 साल  के  बाद  भी  याद है   बहुत insensitive  था वो डॉक्टर और  बहुत rudely behave  कर  रहा था   ऐसा लग रहा था  की जैसे  उसे  मरीज़  की  तकलीफ़  का ज़रा  भी  अहसास  नहीं . हम लोग  मम्मी  की  तकलीफ   बयान करने के लिए  बेताब थे ... और  वो  डॉक्टर  हमें अपनी बात भी नहीं  कहने दे रहा था ....  और बार - बार  one  by one , one by one  कह के  रोक देता था .
 इस डॉक्टर  ने  आपके  कुछ टेस्ट  करवाए थे  जिसकी  रिपोर्ट  हमें  कुछ ही  देर में  मिल गयी  .  इस  डॉक्टर  ने  रिपोर्ट देखते  ही  बड़े  ठंडे  लहजे में कहा ..."की अब पेशेंट  में कुछ नहीं बचा है ... ज्यादा से ज्यादा  तीन  महीने की जिंदिगी  और है।"

ये सुन कर हम दोनों  भाई  - बहन  के तो होश  ही  उड़  गए।  जो डॉक्टर  ने कहा उसका हमें ज़रा  भी गुमान  नहीं था.  मम्मी .... हम  आपको किसी  भी  क़ीमत  पर   खोने  को तैयार  नहीं थे . मेरा दर्द तो आंसू बन कर  छलक  गया था आँखों से   ... लेकिन  आपके शैल  ने अपने  ज़ज्बात  को  फिर  भी काबू  में  रखा . उसने  बस इतना ही कहा की ... 
"अप्पी  मुझे ऐसा  लग रहा है की जैसे आस पास खड़े  लोग  slow  motion  में हो गए है .... दिल सा  बैठ  गया था  उसका ."

 आप  के सामने  हम  रो नहीं सकते थे ...और आँसू  रुकने का  नाम नहीं  ले रहे थे .  ख़ैर  किसी तरह हम  आपको  घर ले आये . अपना फ्लैट  11nd floor  पर था   और  आप  इतनी    सीढ़ियाँ चढ़  नहीं  सकती  थी,उस  वक़्त  आपके बेटे  शैली  ने  बड़े  प्यार  से  आप  को  गोद में उठाया  और   घर में ले जाकर  बिस्तर  पर  लिटा दिया  . उस वक़्त हम दोनों  बहुत रोना चाहते थे ... लेकिन आप के सामने नहीं , मैं  घर का कोई  कोना तलाशती रोने के लिए और शैली घर  से  बाहर  जाता .....  रोकर अपना दिल हल्का करने के लिए . वो मेरे सामने  भी नहीं  रोना चाहता था 

उन  दिनों  आप को   खांसी  का ज़बरदस्त अटैक सा   होता   था  जिसे सुन कर  हम लोगो का दिल दहल जाता था . Lungs   में  पानी  भर  जाने  की   वजह से  आपका  दो  क़दम  भी चलना  दुश्वार था ,आपकी सांस  चलने  लगती थी  उस वक़्त  मैं  और  शैली एक - दुसरे को  बड़ी   बेबसी  से  देखते  ऐसा लगता  की हर खांसी के अटैक के  साथ  मम्मी  मौत के  एक  क़दम  और नजदीक  आती  जा  रहीं है .शैली  बेचैन होकर  मुझ  से कहता ..."अप्पी ... ख़ुदा  से  दुआ मांगो. शायद  हमारी मम्मी को दुआएं लग जाएँ और वो ठीक हो जायें".
  जुलाई   की  सख्त  गर्मी   आपको  और  ज्यादा  परेशान  कर  रही थी ऊपर  से आप  कुछ  खा  भी नहीं पा रही थी ...  सिर्फ  एक चीज़  के अलावा ....वो  था  कस्टर्ड  वनिला  फ्लेवर . एक  यही चीज़ आप ख़ुशी से खा  पा रही थी . मैं रोज़ आप  के लिए  खूब   सारा कस्टर्ड  बना देती,  मुझे  कम से कम इस बात का सुकून तो  था की आप  कुछ  तो खा पा  रहीं  हैं . 

 यूं  तो डॉक्टर  ने  आपकी  जिंदिगी सिर्फ 3  महीने  बताई थी , लेकिन   कुछ    दूसरे  टेस्ट  करवाने  के लिए भी   कहा  था ...क्योंकि  सही हालात  का पता  इन  सारी टेस्ट  रिपोर्ट  आने के बाद ही  चलता . इसी  वजह  से हमारे लिए  अभी एक उम्मीद  की किरन  बाक़ी थी . हमें आपकी  फाइनल  रिपोर्ट का इन्तिज़ार था  इसलिए हमने अभी तक डैडी को कुछ नहीं बताया था .वो हमसे बार - बार पूछते   और  हम यही  कहते ,  की ... मम्मी   ठीक है . लेकिन  वो आखिर हमारे डैडी है  और हम हैं उन के बच्चे ...  कही न कही उन्हें थोडा सा शक  सा था ... की  कोई  सीरियस  बात  है .  

रूफ़ी   को  हमने  सारी  बात  बता दी थी  वो   अगले ही दिन  आ गया था , अब   मैं  अकेली  नहीं थी  मेरे दोनों भाई  मेरे  साथ थे . उसके  आते  ही   मुझे  और शैली को बड़ी  राहत  और सुकून मिला।  फाइनल  रिपोर्ट्स  रुफी ने अपने हाथ से ली ... बड़े भरी  दिल  से .... जब वो रिपोर्ट ले रह था  तब उसके हाथ  काँप रहे थे  सारी रिपोर्ट्स एक  ही बात  कह   रही थी ...की  आप  का साथ  हमसे  छूटने वाला  है अब ज्यादा दिनों तक आप  हमारे साथ नहीं रहेंगी . अब डैडी से  और  नहीं  छुपाया जा सकता था ... इसलिए  उन्हें  सारी  बात बता दी गयी .  जिस पर डैडी   ने  रूंधे  गले  से  बस इतना  ही  कहा .... की  "तुम लोग डॉक्टर   से  मम्मी का सारा मेडिकेशन प्लान करवा लो  और उन्हें  घर ले आओ ... अब तुम्हारी मम्मी को मैं अपने  पास ही  रखूँगा ... और उनका सारा ट्रीट मेंट यही से होगा ."
हम  आप  को लेकर  सुबह  तीन  बजे  घर पहुचे  होंगे, डैडी  जाग  रहे थे ... उन्होंने  जल्दी  से  गेट   खोला और  आपको  बड़े  प्यार  से सहारा देकर   अपने  बेड  रूम  तक पहुचाया ... डैडी  के पास  आकर आप  बहुत ख़ुश  थी  और आप की तबियत भी पहले से  ज्यादा बेहतर  लग रही  थी ..
अगले दिन  उम्मीद की एक   नई  सुबह थी .... हम सब के लियें ...जिसमे  डैडी ने  आप  से  ये वायदा  लिया की  आप को  जीना  है  उन के लिए ...और  हम  सब बच्चों  के  लियें ... डैडी की  बातो  से  आपको  बहुत motivation मिला , उनकी  बातों  ने पता  नहीं  आप पर क्या जादू किया की   आप   कुछ  देर के लिए  अपना सारा   दर्द   और  तकलीफ  भूल   गयी।  आपने   हाथ  उठा  जोश  से कहा ..." हाँ  मुझे जिंदा रहना है ... मैं  जिऊंगी ... तुम्हारे  लिए और अपने बच्चों  के  लियें "


 एक  बार   फिर   आपको  बचाने  के लिए हर मुमकिन  कोशिश  की जाने लगी ....एक बार फिर कैंसर  से लड़ने और  जीने के लिए  कमर  कस के  आप तैयार हो  गयीं थी  . दवा  और दुआ  दोनों ने  मिल  कर काम किया  . आपकी  तबियत  धीरे- धीरे  सभालने  लगी .राजीव  गाँधी  हॉस्पिटल के   medication  प्लान  के मुताबिक   आपका  ट्रीटमेंट  तो  हो  ही  रहा था।  ज़का  मामू  ने  लखनऊ  से मशहूर  होम्योपैथिक डॉक्टर  डॉ बत्रा का  ट्रीटमेंट भी  शुरू  करवाया। बत्रा  क्लिनिक से  आपके  लिए फ़ोन  आता , डॉक्टर  आपसे  बड़ी  तसल्ली से  लम्बी  बात करती .... और मर्ज़ को समझती .... फिर courier  से आपकी होम्योपैथिक दवाएं  भेज देतीं . आप  उन्हें  टाइम  पर लेती रहती . 


मम्मी ... मुझे लगता  है की  आपको डॉक्टर बत्रा की होम्योपैथिक दवाओ ने बहुत   फायदा  किया , कुछ की दिनों में आपकी खांसी तो जैसे गायब हो गयी। Time to Time  आपके  टेस्ट  होते ... और आपकी  सारी  रिपोर्ट्स  ठीक  आती . ऐसा  लगता था की  कोई  चमत्कार  हुआ  है  और  घर की  खुशियाँ  वापस आ गयीं  हैं .

डॉक्टर  ने कहां  आपकी  जिंदिगी  सिर्फ  3  महीने  बताई थी  लेकिन  उसके  बाद   आप  तीन साल  और हमारे साथ  रहीं ...और एक सेहत मंद जिंदिगी जी . अपने हाथो से 2 दिसंबर  2004 को  मेरी शादी की ,  सब  कुछ अपने हाथो से किया , यहाँ  तक की सूजी और  कटे  मेवे से तैयार होने वाली  पीडीयां  भी किसी  और  से  न बनवा  कर  अपने हाथों  से बनायीं  और  सारी  रस्मे   बड़ी  ख़ुशी - ख़ुशी  अदा  की।
 मम्मी  आज  आप  physically   हमारे  साथ नहीं  है ... लेकिन  हर  लम्हा हर सांस  में  आप  हैं और  हमेशा  रहेंगी   
 आपकी  बेटी रेनी
  (अरशिया  ज़ैदी)








20 Jun 2014

Pari ki Farmaish

                                                       परी की फ़रमाइश 



मैं  गहरी नींद  में  थी  अचानक   छोटे- छोटे  मुलायम हाथो  ने  मेरे गाल   को छुआ। … मेरी आँख खुल गयी  सामने  देखा  तो  मेरी  नन्ही  भतीजी   परी  स्कूल की   वाइट  और ब्लू  ड्रेस  पहने  मेरे सामने  खड़ी है।  उसके  प्यारे  चेहरे  को   देखते ही  मेरी  नींद  ग़ायब  हो  गई  …


"फुफ़ ीजान  मुझे  बाय  कहने  गेट तक नहीं चलेंगी"  वह  उछलते  हुए  बोली। 
 मैंने उसके  गाल  पर  प्यार किया  और  उससे  कहा
"क्यों  नहीं  जाउंगी  मैं  अपनी  परी  को  गेट तक छोड़ने? " उसे  गोद  में  लेकर  मैं  गेट  पर   आ  गई  और  हम  दोनों  स्कूल-  वैन  का इन्तिज़ार  करने  लगे।

लॉन  में लगे चीड़  के पेड़  से  बहुत  तिनके गिरते है   जिससे   लॉन की  हरी -हरी  घास   पर  कूड़ा  सा नज़र  आने लगता है। ..  अचानक  परी   लॉन में बिखरे  हुए तिनके बीनने  लगी  … और मुझसे  कहने लगी। ....
"फुफ़ ीजान इस ट्री से  तिनके  बहुत गिरते हैं , मैं  बीनते - बीनते  थक  जाती हूं  "

 मैंने परी  से कहा  "बेटा  मैं  साफ़  कर  दूंगी "  .... अभी  हम बात  ही  कर  रहे थे   की  परी  की     स्कूल  वैन  आ गयी। …

परी  वैन में बैठ  गई, हाथ  हिला कर  बाय  कहा  और  चिल्ला  कर  बोली
" फुफ़ ीजान आप मुझे स्कूल से लेने आइयेगा"


 परी की बात  कैसे टाली  जा सकती थी  लिहाज़ा  मैं  अपनी   बहन हिना  और  भाई  अली ( शैली ) के साथ  ठीक 12 बजे  परी  के सेंट अल्फोंसस स्कूल लेने  पहुंच गयी। । गेट  खुलने  में कुछ  मिनट बाक़ी थे  इसलिए  हम गेट के  बाहर खड़े  होकर  गेट खुलने का इन्तिज़ार  करने लगे। वहां  खड़े होकर हमें  भी अपने स्कूल  के   वो प्यारे दिन  याद   आने  लगे  थे ।  चंद  मिनट  बाद गेट खुला , अंदर घुसते  की एक  ताज़गी  और  पाजिटिविटी  का  एहसास  हुआ  और   ख़ूबसूरत  जिंदिगी के  अलग  अलग  नज़ारों  का  लुत्फ़  लेते  हुए     हम  परी  के क्लास की तरफ़  बढ़ने लगे। …


हर  तरफ़  छोटे -छोटे  बच्चे  अपना स्कूल बैग  पीठ  पर   लादे   भागे  जा  रहे थे,  उन्हें   देख कर   ऐसा  लगता था  जैसे   मुर्ग़ी- ख़ाना  खुल गया  है  जिसमे  से छोटे- छोटे   प्यारे -प्यारे मुर्गी के बच्चे  निकल कर  इधर- उधर  भाग रहे  हैं ।

 हम परी के क्लास  में जा  पहुंचे , सब बच्चे  एक  से  ही लग रहे थे  जो  इधर- उधर   भाग  रहे थे। मुझे  इतने  बच्चो  में  परी कहीं नज़र नहीं  आई।  इतने  में  मुझे  अपना  कुर्ता   खिचता   सा   महसूस  हुआ , नीचे   देखा, तो  परी  मेरा  कुरता खींच  कर  मुस्कुरा रही  थीं ।.. पसीने से भीगा  चेहरा , सेब की तरह लाल -लाल  गाल , छोटी सी पोनी और  शैतानीं  से  भरी हुई  आखें  थीं  परी  की।

परी  क्लास  में  ज़ोर- ज़ोर  से  अपने  दोस्तों  को पुकार रही थी , उनके पास जा कर  हमारी तरफ इशारा कर रही थी , शायद  जैसे  अपने   दोस्तों को ये बताना चाहती  हो  … की  देखो।   मेरे  घर  से कितने सारे लोग मुझे लेने  आएं हैं
परी  स्कूल  ग्राउंड  में दौड़  लगा रही थी  उसके नन्हे -नन्हे पैर  जैसे रुकने का नाम   ही  नहीं ले रहे थे
 उनके   नन्हे  कंधो  से  स्कूल  बैग   हमने अपने  हाथों  में  ले लिया   था  ताकि  वो  भारी  बैग  के  बोझ  से   आज़ाद  हो  सके और  हम  उसे  हंसता -खिलखिलाते  देख  कर  ख़ुश  हो  सकें।


 अब  हम गेट के  बाहर आ चुके थे।  सामने  आइसक्रीम  वाले को देख  कर  परी  ने  आइस  क्रीम खाने की  फरमाइश  की  वो  भी  ऑरेंज  फ्लेवर ,हम  लोगो  ने  अपनी-  अपनी आइस क्रीम  का  तो  पूरा  मज़ा लिया   ही और  अपनी आइसक्रीम  ख़त्म करने के  बाद  हमारी नज़र  परी  की  आइसक्रीम  पर थीं  जो  आहिस्ता - आहिस्ता अपनी  आइस क्रीम खा रही थी  उनकी आइस - क्रीम भी हम लोगो  ने   खाई।

 इस  प्यारी  सी  बच्ची  की  ख़ासियत  ये है  की  वह  शेयर  करने में  ज़रा  भी  नहीं  हिचकिचाती।  न  तो   चिढ़ - चिढ़  करती  है न ही  रोती  है  बस   अपनी  मासूम  सी   मुस्कुराहट  से  सबको  अपना  दीवाना  बना लेती है। ख़ुशी -ख़ुशी  स्कूल  जाती  है , अपना  होम वर्क करती  है   और सुबह -सुबह  स्कूल  वैन  का इंतिज़ार करते  हुए  अपने  दादा ( जिन्हे वो प्यार से  अददा कहती हैं ) ढेरों  सवाल  पूछती  रहती  हैं




आइसक्रीम  ख़त्म  करके  मैंने परी  को  अपनी  गोद  में  लिया  हम सब  कार में बैठ  गए    मैंने कई बार  नोटिस  किया  है  कि  पता नहीं  क्यों  कार  या  बाइक  पर  बैठते  ही परी बिलकुल खामोश सी हो जाती है.  शायद  पेट्रोल  की   स्मैल  से  उसे प्रॉब्लम  होती है.


15 मिनट  में  हम  घर  पहुंच  गए  , गेट  पर   उनकी  मम्मी    उसका  बेचैनी  से इन्तिज़ार  कर  रहीं थीं  कार  से  उतर कर  परी अपनी मां से चिपट गयी और  उन्हें  जल्दी -जल्दी स्कूल की   सारी  बातें  बताने  लगी। हम लोग  उनकी  बातें  सुन कर  मुस्कुरा दिए।






अरशिया  ज़ैदी

  

26 Apr 2014

Talkhiyaan

                                            तल्ख़ीयां 

यूं  अजनबी सा बनके , 
हर बार तू मिलता रहा
 yoon ajnabi sa banke , 
har baar tu milta raha 
एक रंज, और घुटन का , एहसास  दिल  करता  रहा.
Ek ranj aur ghutan ka 
aehsaas dil karta raha. 

करती रहीं  नम  पलकें  मेरी, 
 वो  तल्ख़ीयां   तेरी.....
karti gayein nam palkein meri 
vo talkhiyaan teri 
फिर  भी  न  दिल से  कर सके 
 चाहत  कम  तेरी
Phir bhi na dil se kar sake
 chahat kam teri

रूखा  तेरा अंदाज़  
बयां  करता  रहा  एक फासला
Rookha tera andaaz 
bayaan kerta raha ek phasla
फिर  भी  न  जाने  कौन सा 
देखा  किये  हम आसरा.
Phir bhi na jane   koun   sa
 dekha kiya hum aasra  

जज़्बात में उलझ  कर  
दिल का  कहा  जो माना.
Jazbaat mein  ulajh kar 
Dil ka kaha jo maana 
ये  जुर्म  था  हमारा  
जो  आज  हम ने जाना .
Ye jurm tha hamara 
jo aaj hum ne jaana.

 अरशिया  ज़ैदी 

17 Oct 2013

Black Eid

                                           वो  काली ईद 
 इस  बार  मैंने  ईद उल  अज़हा   नहीं  मनाई , न ही  अच्छे  कपडे  पहने और  न  ही  कोई  पकवान  बनाये।  सच तो ये  था की  कोई  खुशी   मनाने  का  दिल  ही  नहीं  चाहा , दिल  चाहता  भी  तो  कैसे ,  मुज़फ्फर नगर  में  मज़हबी  दंगो के  शिकार  हुए  तक़रीबन 100000  हम  वतनों  की  तो  ये  काली  ईद  थी , जिसे  वो  अपने  घरों  से  बेघर  होकर  अलग - अलग  गैर सरकारी राहत  शिविर में,  आँखों  में  आँसू  लिए  मना   रहे  थे.  
ये  वो ईद है  …. जब  कोई   दंगो में  मरे  अपने भाई को  रो रहा है। … तो  कोई  बाप अपने जवान  बेटे को।  कोई   नई- नवेली  दुल्हन  जिसके सुहाग की मेहदी  भी  फीकी  नहीं  पड़ी  है  वो  इन  दंगो  में   बेवा  होकर अपनी क़िस्मत  को रो रही है. मज़हबी दंगो  में  फैली  नफ़रत में  गैंग  रेप की  शिकार  हुई  उन  मासूम  लडकियों  की  कैसी  ईद , जिनकी  अस्मत  इन  दंगों  की  भेंट  चढ़ गयी।   

जब  भी  इस तरह के दंगे होते हैं  तो न तो  किसी हिन्दू कि मौत होती है और न ही किसी  मुस्लिम   की , मौत होती है  तो इंसानियत  की। …  जो सिसक -सिसक के दम तोड़ देती   है। वो   दोस्त  और पड़ोसी   जो रिश्ते दारो से  भी  ज़यादा  क़रीब  हुआ करते   थे , जिनके साथ हर  वक़्त का खाना - पीना , उठना  -बैठना  होता  था अचानक  मज़हबी  नफ़रत  उन्हें एक -दुसरे  के  ख़ून   का  प्यासा  बना  देती है। 
नफरत के  बीज  बोने वाली  सियासी  ताक़तें  आम  लोगो  को  मज़हब  के नाम पर गुमराह  करती है। । लोग  उनकी बातों  में आ जाते  हैं और एक दुसरे  को मारने - मरने  पर  उतार  जातें हैं,  और  फिर खेल शुरू होता है  वोट बैंक का, जिसे सियासी पार्टियां  किसी  भी  तरह  बढ़ाना चाहती  हैं। 
मुज़फ्फरनगर  में  पहली बार  ये मज़हबी दंगे  भड़के , जिसकी आग  गांवों  तक जा  पहुँची है  जो की  आने वाली  किसी  बड़ी तबाही  की तरफ  इशारा  है  क्योंकि  जब गावों के  गावों  जलने शुरू हो जाते हैं   तो   नफरतों  की आग को  बुझाना बड़ा  मुशकिल  हो जाता  है , वहाँ  रहने  वालों  का कहना  है  की  ये दंगे  minorities   को  निशाना  बना कर किये गए थे। जब उनके घर जलाये जा रहे थे  और  उन्होंने पुलिस से मदद  मांगी  तो  पुलिस और  एडमिनिस्ट्रेशन ने  ये कह कर  मदद  करने से इंकार कर दिया की  "अभी  हमारे पास टाइम  नहीं  है, जब टाइम होगा  तब आयेंगे।"
बेहद  दुःख की  बात ये  है  की  दंगो  के दो महीने  बीत  जाने के बाद भी ये परेशान हाल लोग   ऐसे  बदहाल  राहत -शिविरो  में  पनाह  लेने  के लिए मजबूर  है , जहां  बुनियादी  सहुलियते  भी  मुहैया  नहीं कराई गयी है, उनके ज़ख्म  कैसे भरेंगे जब  तक  सरकार की तरफ़ से  उनको  फिर से बसाने   के   पुख्ता  इंतिज़ाम  नहीं किये जायेंगे।  दिल  के ज़ख्म  तो भरने से रहे … कम से  कम  सरकार  उन्हें भरपूर  राहत   तो दे.…  ताकि उनकी रोज़ मर्रा  की  ज़िन्दिगी  फिर  से   शुरू  हो सके. 

 अरशिया  ज़ैदी  































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