परी की फ़रमाइश







अरशिया ज़ैदी

मैं गहरी नींद में थी अचानक छोटे- छोटे मुलायम हाथो ने मेरे गाल को छुआ। … मेरी आँख खुल गयी सामने देखा तो मेरी नन्ही भतीजी परी स्कूल की वाइट और ब्लू ड्रेस पहने मेरे सामने खड़ी है। उसके प्यारे चेहरे को देखते ही मेरी नींद ग़ायब हो गई …
"फुफ़ ीजान मुझे बाय कहने गेट तक नहीं चलेंगी" वह उछलते हुए बोली।
मैंने उसके गाल पर प्यार किया और उससे कहा
"क्यों नहीं जाउंगी मैं अपनी परी को गेट तक छोड़ने? " उसे गोद में लेकर मैं गेट पर आ गई और हम दोनों स्कूल- वैन का इन्तिज़ार करने लगे।
लॉन में लगे चीड़ के पेड़ से बहुत तिनके गिरते है जिससे लॉन की हरी -हरी घास पर कूड़ा सा नज़र आने लगता है। .. अचानक परी लॉन में बिखरे हुए तिनके बीनने लगी … और मुझसे कहने लगी। ....
"फुफ़ ीजान इस ट्री से तिनके बहुत गिरते हैं , मैं बीनते - बीनते थक जाती हूं "

मैंने परी से कहा "बेटा मैं साफ़ कर दूंगी " .... अभी हम बात ही कर रहे थे की परी की स्कूल वैन आ गयी। …
परी वैन में बैठ गई, हाथ हिला कर बाय कहा और चिल्ला कर बोली
" फुफ़ ीजान आप मुझे स्कूल से लेने आइयेगा"


परी की बात कैसे टाली जा सकती थी लिहाज़ा मैं अपनी बहन हिना और भाई अली ( शैली ) के साथ ठीक 12 बजे परी के सेंट अल्फोंसस स्कूल लेने पहुंच गयी। । गेट खुलने में कुछ मिनट बाक़ी थे इसलिए हम गेट के बाहर खड़े होकर गेट खुलने का इन्तिज़ार करने लगे। वहां खड़े होकर हमें भी अपने स्कूल के वो प्यारे दिन याद आने लगे थे । चंद मिनट बाद गेट खुला , अंदर घुसते की एक ताज़गी और पाजिटिविटी का एहसास हुआ और ख़ूबसूरत जिंदिगी के अलग अलग नज़ारों का लुत्फ़ लेते हुए हम परी के क्लास की तरफ़ बढ़ने लगे। …
हर तरफ़ छोटे -छोटे बच्चे अपना स्कूल बैग पीठ पर लादे भागे जा रहे थे, उन्हें देख कर ऐसा लगता था जैसे मुर्ग़ी- ख़ाना खुल गया है जिसमे से छोटे- छोटे प्यारे -प्यारे मुर्गी के बच्चे निकल कर इधर- उधर भाग रहे हैं ।

हम परी के क्लास में जा पहुंचे , सब बच्चे एक से ही लग रहे थे जो इधर- उधर भाग रहे थे। मुझे इतने बच्चो में परी कहीं नज़र नहीं आई। इतने में मुझे अपना कुर्ता खिचता सा महसूस हुआ , नीचे देखा, तो परी मेरा कुरता खींच कर मुस्कुरा रही थीं ।.. पसीने से भीगा चेहरा , सेब की तरह लाल -लाल गाल , छोटी सी पोनी और शैतानीं से भरी हुई आखें थीं परी की।
परी क्लास में ज़ोर- ज़ोर से अपने दोस्तों को पुकार रही थी , उनके पास जा कर हमारी तरफ इशारा कर रही थी , शायद जैसे अपने दोस्तों को ये बताना चाहती हो … की देखो। मेरे घर से कितने सारे लोग मुझे लेने आएं हैं
परी स्कूल ग्राउंड में दौड़ लगा रही थी उसके नन्हे -नन्हे पैर जैसे रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे
उनके नन्हे कंधो से स्कूल बैग हमने अपने हाथों में ले लिया था ताकि वो भारी बैग के बोझ से आज़ाद हो सके और हम उसे हंसता -खिलखिलाते देख कर ख़ुश हो सकें।

अब हम गेट के बाहर आ चुके थे। सामने आइसक्रीम वाले को देख कर परी ने आइस क्रीम खाने की फरमाइश की वो भी ऑरेंज फ्लेवर ,हम लोगो ने अपनी- अपनी आइस क्रीम का तो पूरा मज़ा लिया ही और अपनी आइसक्रीम ख़त्म करने के बाद हमारी नज़र परी की आइसक्रीम पर थीं जो आहिस्ता - आहिस्ता अपनी आइस क्रीम खा रही थी उनकी आइस - क्रीम भी हम लोगो ने खाई।
इस प्यारी सी बच्ची की ख़ासियत ये है की वह शेयर करने में ज़रा भी नहीं हिचकिचाती। न तो चिढ़ - चिढ़ करती है न ही रोती है बस अपनी मासूम सी मुस्कुराहट से सबको अपना दीवाना बना लेती है। ख़ुशी -ख़ुशी स्कूल जाती है , अपना होम वर्क करती है और सुबह -सुबह स्कूल वैन का इंतिज़ार करते हुए अपने दादा ( जिन्हे वो प्यार से अददा कहती हैं ) ढेरों सवाल पूछती रहती हैं

आइसक्रीम ख़त्म करके मैंने परी को अपनी गोद में लिया हम सब कार में बैठ गए मैंने कई बार नोटिस किया है कि पता नहीं क्यों कार या बाइक पर बैठते ही परी बिलकुल खामोश सी हो जाती है. शायद पेट्रोल की स्मैल से उसे प्रॉब्लम होती है.
15 मिनट में हम घर पहुंच गए , गेट पर उनकी मम्मी उसका बेचैनी से इन्तिज़ार कर रहीं थीं कार से उतर कर परी अपनी मां से चिपट गयी और उन्हें जल्दी -जल्दी स्कूल की सारी बातें बताने लगी। हम लोग उनकी बातें सुन कर मुस्कुरा दिए।
अरशिया ज़ैदी