22 Oct 2011

Jagjeet singh-khaan tum chale gaye




जगजीत सिंह .........कहां तुम चले गये 

आज भी मुझे याद है वो दिन, जब मुझे दिल्ली के जामिया- मिलिया इस्लामिया में मशहूर शायर कैफ़ी आज़मी की याद में आयोजित,एक प्रोग्राम में शामिल होने  का मौक़ा मिला था. इस  मौके पर कई मशहूर और बाइज्ज़त हस्तिया शामिल हुई थी,इन हस्तियों में एक बेहद खास चेहरा था ...... ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह का,जो  सफ़ेद कुरता -पैजामा पहने एक किनारे खामोश  खड़े हुए थे.
जगजीत सिंह नाम है एक ऐसी शख्सियत  का ..... जिनके बारे में,कितना  भी लिखा जाये वो कम होगा. 8 फरवरी 1941 को जन्मे  जगजीत सिंह को  बचपन  में  नाम  मिला था जगमोहन सिंह. एक दिन  उनके माँ-बाप के गुरु ने  उन्हें शबद गाते हुए सुना तो कहा कि .." इस बच्चे का नाम बदल कर जगजीत सिंह कर दो,इसकी आवाज़ में इतनी मीठास है ..... की  ये सारे जग को जीत लेगा ".इस तरह उन का नाम जगमोहन  सिंह से बदल कर जगजीत सिंह कर दिया गया.
जगजीत सिंह को गज़लो का बादशाह कहा जाता है.उन्होंने गज़लों को   आसान शायरी में तब्दील किया और सेमी क्लास्सिक बना कर लोगो के सामने पेश किया.1970  के दशक में जब गज़ले नूर जहाँ,मेहदी हसन ,मल्लिका पुखराज,बेगम अख्तर,तलत महमूद जैसे दिग्गज गा रहे थे.उस  दौर में,जगजीत सिंह अपनी खूबसूरत आवाज़ और गायकी से  उनके बीच  जगह बनाने में कामयाब रहे. जगजीत सिंह ने गजलो को अपना आधार बनाया. और गिटार जैसे वेस्टर्न साज और Digital Multitrack Recording   का इस्तेमाल करके ग़ज़ल को एक नई पहचान देकर उसे आम लोगो के बीच मशहूर कर दिया .

जगजीत सिंह ने मशहूर गायिका चित्रा को अपनी ज़िन्दगी का हम सफ़र बनाया.और1969 में उनसे शादी कर ली. इन दोनों ने,बतौर हिंदुस्तान की पहली पति -पत्नी की हिट जोड़ी के रूप में,देश और दुनिया में कई बेहेतरीन  पर्फोर्मांस देकर मोसकी और गायकी में अपनी अमिट छाप छोड़ दी है.नए रेकॉर्ड्स बनाने वाली उनकी एल्बम THE UNFORGATABLES में इस जोड़े ने अपनी मखमली आवाज़ में ऐसी लाजवाब गजले गायीं है जिनका जादू आज भी लोगो के सर चढ़ कर बोलता है................... 
दुनिया जिसे कहते है जादू का खिलौना है , मिल जाये तो मिट्टी है,  खो  जाये तो सोना है .........
सरकती जाये है रुख़ से  नकाब आहिस्ता आहिस्ता , निकालता आ रहा है आफ़ताब आहिस्ता  आहिस्ता .......
बहुत  पहले से इन क़दमो की आहट जान लेते है , तुझे ए  जिंदिगी हम दूर से पहचान लेते है...... वगेह्रह   वगेह्रह   ....... उनकी ऐसी यादगार  गज़ले है जो आज भी  हर गजल सुनने  वाले की पहली पसंद हुआ करती  है .
          उन्होंने मिर्ज़ा ग़ालिब,क़तील शिफाई,निदा फाजली,फिराक गोरखपुरी, शाहिद कबीर,अमीर मीनानी,कफील अजहर,सुदर्शन फकीर की  शायरी को अपनी खूबसूरत आवाज़ से सजाया. जगजीत सिंह के कई शुरुवाती  कामयाब ग़ज़ल अलबमो के टाईटल जहा इंग्लिश में हुआ करते थे ......जैसे   Hope, In search,Vision , Love is Blind., Ecstasies, A Sound Affair, Passions.etc.वही बाद में,उनका रुझान उर्दू की तरफ ज्यादा हो गया था. जिसके चलते उन्होंने अपनी ग़ज़ल अलबमो को मेराज,कहकशां,चिराग , सजदा,सोज,सहर,मुन्तजिर,और मरासिम जैसे उर्दू उन्वानो(titles) से सवारा.इसके अलावा उन्होंने हिंदी,उर्दू ,पंजाबी, नेपाली,सिन्धी,बंगाली गुजरती में भी अनगिनत गीत गाये .
                कहते है कि हर कामयाबी के पीछे कड़ी मेहनत,लगन और लम्बा संघर्ष छुपा होता है.गज़लों के इस बेताज बादशाह को भी बॉलीवुड में एक अच्छा ब्रेक पाने के लिए काफी जद्दोजहेद करनी पड़ी......फिल्म एक्टर  ओम प्रकाश के बुलावे पर जब वो  फिल्मो में अपनी किस्मत आजमाने सपनो के शहर मुंबई  गए तो उन्हें काफी मायूसी  का सामना करना पड़ा .., बड़े बड़े संगीत कारो ने उनकी आवाज़ सुनी,पर ये कह कर मना कर दिया की ..... "आपकी आवाज़ तो अच्छी है ,पर हीरो  पर सूट नहीं करेगी ."
इसके बाद भी वो हताश नहीं हुए और बड़े- बड़े एक्टरो के घर सजी - महफ़िलो में भी उन्होंने performance दी,इस उम्मीद पर ........की शायद  किसी को उनकी आवाज़ पसंद आ जाये और उन्हें फिल्मो में गाने का एक मौक़ा मिल जाये.आखिर कार उनकी ये कोशिशे रंग लायी और1980 के दशक में प्रेमगीत,साथ साथ, अर्थ जैसी फिल्मो में अपनी मोसकी और खूबसूरत आवाज़ से सबको अपना क़ायल बना दिया .
फिल्म प्रेम गीत(1981)का का मशहूर गीत..." होठो  से छु लो तुम,मेरा  गीत अमर कर दो"फिल्म साथ -साथ  का  ...
"तुमको देखा तो ये,ख़याल  आया,जिंदिगी धूप तुम घना साया."
फिल्म अर्थ की मशहूर गज़ले -"तेरे खुशबू में लिखे ख़त मैं जलाता कैसे" ,                                                
                                               "झुकी झुकी सी नज़र बेक़रार है के नहीं.. "                           "तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो 
  क्या गम है जिसको छुपा रहे हो." 
                                                                   "कोई ये कैसे बताये के वो  तन्हा क्यों है.".... 
जैसे गीत और गजले उनकी आवाज़ और मौसकी से सजे हुए है.इसके अलावा नये दौर की कई फिल्मे जैसे गाँधी टू हिटलर ,कसक, वीरज़ारा , जोगेर्स पार्क,तरकीब, दुश्मन,सरफरोश तुम बिन में भी उन्होंने अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा.जिसकी गजले और गीत लोग अपने favourite  collection में बड़े शौक़ से  रखते है .
मशहूर शायर गुलज़ार जगजीत सिंह को प्यार से ग़ज़ल जीत सिंह कहा करते  थे. गुलज़ार के टी.वी सीरियल मिर्ज़ा ग़ालिब की मशहूर गज़लो को  जगजीत सिंह ने अपनी आवाज़ में गा कर बेमिसाल बना दिया है. 

अपनी गायकी से सबका दिल जीत लेने वाले जगजीत सिंह की जिंदिगी  में उस वक़्त अँधेरा छा गया, जब जुलाई 1990 के एक रोड एक्सिडेंट में, उनके बीस साल के एकलौते बेटे, विवेक की मौत हो गयी.जिसके बाद सदमे में डूबी चित्रा सिंह ने, जहां हमेशा के लिए गाना छोड़ दिया.वही जगजीत सिंह ने अपने  बेटे की बेवक्त जुदाई के दर्द को अपने अंदर ही जज़्ब कर लिया और संगीत में अपने आप को, पूरी तरह  से डुबो दिया.जगजीत सिंह अक्सर एक पंजाबी  गाना गाते थे......."मिटटी का बावा" जिसे उनकी बीवी चित्रा सिंह ने एक पंजाबी फिल्म में गाया था.ये गाना जिसमे,किसी अपने को..... बहुत कम उम्र में खो देने का दर्द बया किया गया है, जो उनकी ही आप बीती है.जगजीत सिंह ने अपने बेटे विवेक की याद में एक एल्बम  Some One Some Where(1994)निकाला था,जिसमे आखरी बार उनकी पत्नी चित्रा सिंह ने  उनके  साथ  गाया  था.
अपनी आवाज़ से सबके दिलो पर  राज करने वाले  जगजीत सिंह, एक ऐसे बेहेतरीन इंसान थे,जिन्होंने कई बार दूसरो की मदद, इतनी ख़ामोशी से कि, कि किसी को पता भी नहीं चला.एक शो ओर्गानायेज़र, जिनका काम ठीक-ठाक नहीं चल रहा था .एक महफ़िल में वो जगजीत सिंह से मिले और उनके साथ शो करने की  ख्वाहिश ज़ाहिर की और अपनी परेशानी बताते हुए कहा की "मेरी बेटी की शादी है,और मेरे पास पैसे की कमी  है, .... अगर आपके शो की ज़िम्मेदारी मुझे मिल जाएगी,तो मुझे बतौर प्रोफिट दो तीन लाख रूपए बच जायेगे और मुश्किलें आसान  हो जाएगी." जगजीत सिंह के पूछने पर ....... उन्होंने पैसे की पूरी ज़रुरत बता दी.
अगले दिन जगजीत सिंह ने उनको को बुलाया और कहा ..... " ठीक है .... आप मेरे लिए शो Organize करें, मै आपके शो में गाऊँगा लेकिन आपको शो इसी हफ्ते मे करना होगा."  ये सुन कर वो organizer घबरा गए और कहने लगे ..... "सर इतनी जल्दी शो कैसे organize होगा ......  इसके  लिए तो काफी तैयारी करनी होगी. इस पर जगजीत सिंह ने बेफिक्र होकर, मुस्कुराते हुए कहा ...... " फिक्र मत करो सब हो जायेगा. तुम्हारी बेटी की शादी तय हो गयी  है .... ये मिठाई का डिब्बा घर ले  जाओ और सबका मुह मीठा करो. "ये सुन कर वो साहब,मायूस होकर अपने घर चले गए. घर जाकर जब उन्होंने वो मिठाई का डिब्बा खोला तो हैरान रह गए ... क्योकि उस डिब्बे में उतनी रकम रखी हुई थी, जितनी उन्हें अपनी बेटी की शादी के लिए ज़रुरत थी .
अपने काम को लेकर उनका मानना था की "पहले हमें खुद अपने काम को, अच्छी तरह से समझ कर ,तसल्ली कर लेनी चाहिए,क्योकि  जब हमें अपने काम से तसल्ली  होगी ,तब हम दूसरो से ये उम्मीद कर सकते है की शायद उन्हें  भी  हमारा काम पसद  आये."
वो अपने काम के लिए इतने Devoted थे की, जब उनकी माँ का इंतकाल हुआ तो, उस दिन कोलकाता में उनका बहुत बड़ा शो था. सारे टिकेट एडवांस  में बिक चुके थे. माँ के गुजर जाने की खबर सुन कर उन्होंने फ़ौरन दिल्ली का एयर टिकेट बुक कराया, घर पहुच कर,एक बेटे होने के सारे फर्ज अदा किये, और फिर वापस अपना शो करने कोलकाता चले गए. .....किसी का कोई नुकसान नहीं होने दिया उन्होंने .शो में पहुच कर भी उन्होंने किसी से कुछ नहीं कहा ...... बल्कि,एक घंटा देर से पहुचने के लिए माफ़ी मांगी.  फिर तीन चार अच्छी -अच्छी गज़ले पेश करने  के बाद सबको बताया की उनकी माँ इस दुनिया से चली गयी है.ये था उनका Professionalism और  काम के लिए उन की लगन .
2003 में उन्हें आर्ट और संगीत में दिए गए योगदान के लिए भारत सरकार ने तीसरे सबसे बड़े अवार्ड पदम् भूषण से सम्मानित किया. इसके बाद 10 मई 2007 को संसद भवन के सेंट्रल हॉल में1857 में लड़ी  गयी पहली आजादी की लडाई की 150 वी साल गिरह पर, जगजीत सिंह ने बहादुर शाह  जफ़र की मशहूर ग़ज़ल ..... लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में ..... गायी.जिसे सुनने के लिए राष्ट्रपति अबुल कलाम आज़ाद ,प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ,लोक सभा स्पीकर सोम नाथ चटर्जी,कांग्रेस प्रेसिडेंट सोनिया गाँधी के अलावा तमाम बड़े नेता मौजूद थे.
                                                                            जगजीत सिंह आखरी वक़्त तक ,अपनी सुरीली आवाज़ से महफिले सजाते रहे. बीमार होने से पहले उन्होंने लगातार तीन शो किये थे.जो 16 सितम्बर 2011 को मुंबई के Nehru Science Centre में,17 सितम्बर 2011को  दिल्ली के श्री फोर्ट ऑडिटोरियम में और 20 Sep.को देहरादून के The Indian Public School में organised किया गया. वही उन्होंने सर दर्द की शिकायत की थी ,जिसके बाद मुंबई के लीलावती अस्पताल में उनके दिमाग की सर्जरी हुई और उन्हें  I.C.U में Ventilator पर रखा गया था .देश और दुनिया में उनके अनगिनत चाहने वाले उनके सेहत मंद होने की दुआ मांगते हुए ये कहते रहे
 "उठ के महफ़िल से मत चले जाना
                                  तुमसे रोशन ये कोना कोना है."
लेकिन फिर भी, उन्होंने किसी की नहीं सुनी और 70 साल की उम्र में 10 अक्टूबर 2011 को अपने सभी  चाहने वालो को अलविदा कह कर वो इस दुनिया से चले गये  .और उन्हें याद करके हमारे सुनने के लिए छोड़ गये .....  अपना गाया हुआ ,ये गीत ...... 
चिट्ठी न कोई सन्देश ,
              न जाने कौन से देश
कहां  तुम चले गये .
अरशिया  ज़ैदी













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