22 Sept 2011

Aatankwaad aur Hum

 आतंकवाद और हम 

हाल में ही दिल्ली में हुए धमाको ने पूरी दिल्ली को हिला कर रख दिया .कई बेगुनहा लोगो की जाने चली गयी,और बाक़ी कई लोग कई दिन तक घायल अवस्था में,जिंदिगी और मौत  के बीच संघर्ष  करते रहे .एक बार फिर आतंकवाद ने मानवता को शर्मिंदा कर दिया.

आतंकवादियों  ने पहले जयपुर , बंगलौर,अहमदाबाद ,और अब भारत की राजधानी दिल्ली  को अपने आतंकवाद का निशाना बनाया है तथा लोगो के दिलो में दहशत बैठाने का असफल प्रयास किया है. आतंकवाद  समाज  के नाम पर ,धर्म के नाम पर, देश के नाम पर और राजनीती के नाम पर आम आदमी को बाटने की एक सोची -समझी साजिश है .आतंकवाद के माध्यम से कुछ असामाजिक तत्व देश के प्रति गद्दारी करते हुए,अपने व्यक्तिगत स्वार्थो को पूरा कर रहे है,नहीं तो ऐसा कौन सा धर्म है जो मजहब और जिहाद के नाम पर बेगुनहा और मासूम लोगो की जान लेना सिखाता हो .

जहा तक  इस्लाम धर्म का सम्बन्ध है ,वो तो आपसी सदभाव,अहिंसा और प्रेम का सन्देश देता है|ये धर्म तो पेड़-पौधो से लेकर जानवरों और इंसानों  को चोट पहुचाने को भी पाप समझता है....तो फिर ये इंसानियत के दुश्मन इस्लाम के नाम पर लोगो का खून कैसे बहा सकते है और हजारो लोगो की रोज़ी-रोटी कैसे छीन सकते है?


आज का भारतीय मुसलमान अपने उन सभी भाई बहनों लिए बेहद दुखी है ,जो इस आतंकवाद के शिकार हुए है ,इसका जबरदस्त विरोध ,वो कभी लखनऊ की मशहूर  हजरत अब्बास की दरगाह पर,मुह पर सफेद पट्टी बांध कर करते  हैं तो कभी लाखो मुसलमान, मुंबई में शुक्रवार की नमाज़ के बाद ,विशेष तौर पर दहशत गर्दी के लिए बददुआ करने के लिए अपने हाथ उठाते हैं .

आज हर मुसलमान जो भारतीय है ,वो इस आतंकवाद की ज़ोरदार शब्दों में निंदा करता है और इस पाप के लिए दोषियों को कठोर से कठोर सज़ा दिलाने की हिमायत करता है . दूसरी ओर जब- जब इन दहशत गर्दो  ने मानवता का रक्त बहाया है ,तब तब हजारो नेक और अच्छे लोगो ने आगे आकर हादसे के शिकार लोगो के लिए , हर सम्भव सहायता देने का प्रयास किया है फिर चाहे वो किसी धर्म ,किसी जाति या समाज के किसी वर्ग से सम्बंध रखता हो . हर भारतीय ने अपने इन भाई बहनों  के लिए सहयता करके  देश और समाज के प्रति  अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा किया है .

इसी सम्बंध में दो कूड़ा बीनने वाले बच्चो ने दो जिंदा बमो के खबर वक़्त रहते पुलिस को दी. जिनके कारण पुलिस उन बमों को निष्क्रिय कर सकी  और कई और बड़े हादसे होने से बच गए . 

आतंकवाद हमारी लड़ाई है जिस के लिए हम सभी को मिल कर आगे आना होगा और पहल करनी होगी केवल पुलिस और नेताओ पर हम सारी ज़िम्मेदारी नहीं डाल सकते . हमें भी जागरूक होना पड़ेगा ,तभी हम अपने देश को आतंक वाद से बचा पायेगे . साथ ही इस बात का भी विशेष ध्यान रखना होगा कि दोषी व्यक्ति  को सख्त से सख्त सज़ा मिले ,पर किसी निर्दोष के साथ कोई  अन्याए ना हो. हमारा देश सभी के रहने के लिए एक सुरक्षित स्थान हो .और अब न तो कोई आतंकवाद की  घटना घट सके और न ही कोई आतंकवाद के भेट न चढ़ सके .

अरशिया  ज़ैदी 
Published in  hindi monthly Magazine BYAAN(nov.2008)

7 Sept 2011

Article-Kuch Khushfehmiyaa Shadi Ke Baare Me

                               कुछ खुशफहमिया शादी के बारे में 
               

Greh Shobha ,June- 11,2009
शादी से पहले हर लड़की यही सपने सजोये होती है की जब वह दूल्हन  बन कर साजन के घर  जाएगी तो ,हर कदम पर उसका हमसफ़र उसके साथ होगा . हर तरफ खुशिया ही खुशिया होंगी,दुल्हे मिया अपनी दुल्हन को पलकों पर बिठा कर रखेंगे और उसे कोई दुःख न होने देंगे.
क्या आपने भी कुछ ऐसे ही सपने सजाये है, अपनी शादी के बारे में? अगर ह़ा ,तो हमारी कामना है कि                         
आपके सारे सपने सच हो.                                         


दर असल, लड़किया अपनी शादी को लेकर, कुछ ज़यादा ही  खुश फहमिया पाल लेती  है ,जो अगर शादी के बाद सच नहीं निकलती, तो शादी का लड्डू मीठे के बजाये कडवा लगने लगता है . लेकिन अगर शादी के पहले हम कुछ हक़ीक़तो को अच्छी तरह से समझ  ले तो शादी का पवित्र रिश्ता हमेशा महकता रहेगा.

खुश फ़हमी में न रहे -

शादी, एक बेहद खास और ख़ुशी का अवसर  होता  है, जिस जीवन साथी का इंतज़ार अब तक, हम करते आये हैवो हमें मिल जाता है, नया घर बसता है, नए रिश्ते बनते है, प्यार का खुशनुमा अहसास, हमें हर लम्हा मदहोश किये रहता है.इस तरह हम शादी को अपनी खुशियों का आधार समझने लगते है, और उम्मीद करने लगते है कि अब जीवन  में जो कुछ भी होगा ,वो हमारी खुश्यो को बढाने के लिए ही होगा.पर ये सच नहीं है .....इस बात की कोई गारेंटी नहीं होती की शादी के बाद पति पत्नी एक दुसरे के साथ खुश ही रहेंगे.सच्चाई तो ये है कि आपसी रिश्तो में मनमुटाव ,तनाव या मुद्दों को लेकर गंभीर मतभेद हो सकते है,इसलिए अगर कभी कोई ऐसी स्थिति  आ जाये,तो अच्छा यही होगा कि आप कोई भी बात अपने दिल पर न ल़े. 


अगर आप ये सोच रही है कि,आप के पति आप के प्यार में इतने डूबे रहेंगे कि आप के बिना बोले ही ,आप के दिल की बात को समझ जायेगे ...तो आप ग़लत है. ऐसा नहीं होने वाला है, इस ग़लतफ़हमी को अपने दिल से निकाल दीजिये वर्ना इंतज़ार ही करती रह जाएगी.

शादी के बाद लड़ाई -झगडा न हो,ऐसा तो हो ही नहीं सकता . किचन के बर्तन और कांच की क्रोकरी बचा कर रखियेगा ,गुस्से में कही इस सामान की शामत न आ जाये.

याद रखिये,कि प्रेमिका के पत्नी बन जाने पर, काफी चीजे बदल जाती हैशादी से पहले ,आप के प्रेमी को आप में गुढ़ ही गुढ़ नज़र आते थे,और वो आपकी तारीफ करते नहीं थकते थे पर शादी के बाद, हालात बदल जायेंगे -अब वो आपकी तारीफ करने में कंजूसी करने लगेंगे, और क्यों न करे .....अब उनका काम जो निकल चुका है. अब आप 24 - घंटे उन के पास ही तो रहेंगी उन के घर में. आप को यह नहीं  भूलना चाहिए की "घर की मुर्ग़ी- दाल बराबर'' होती है.


एक मत होना ज़रूरी नहीं-


ऐसा माना जाता है, कि पति- पत्नी है तो सारे काम एक साथ ही करेंगे मगर ये ज़रूरी तो नहीं है कि विभिन्न  मुद्दों पर, दोनों के विचार एक से ही हों .दोनों की सोच और विचार अलग अलग भी तो हों सकते है. दोनों अलग -अलग शख्सियत के मालिक होते है, अलग-अलग माहौल में परवरिश पाते है|  उनके ,संस्कार अलग अलग होने की वजह से  मानसिक स्तर  भी एक दुसरे से जुदा होता है, हों सकता है कि, जो बात एक को सही लग रही हों वही दुसरे को ग़लत लगती हों ,तो फिर ये कैसे मुमकिन है कि पति-पत्नी हर मुद्दे पर एक दुसरे के साथ सहमत हों और वो सारे काम साथ -साथ ही करे.
शादी के बाद आप अपने पति को बदल लेंगी ,ऐसा मत सोचियेगा ,बदलाव सिर्फ तभी हो सकता है जब कोई चाहे और उसके लिए कोशिश करे ,वर्ना किसी की मानसिकता या फितरत कभी नहीं बदलती .


पैसा सब कुछ नहीं-

ये  भी एक भ्रम ही  है कि, पैसा सारी समस्याओ का हल निकाल सकता है वैवाहिक  जीवन की खुशीया, धन से नहीं खरीदी जा सकती. पैसा जिंदिगी में बहुत कुछ है पर सब कुछ नहीं है. आपसी ताल मेल ,प्रेम एक दुसरे के लिए आदर और विश्वास , वैवाहिक जीवन की बड़ी से बड़ी मुश्किल को  भी आसान  बना सकता है.


शादी अकेलापन दूर नहीं करती -

ये भी एक धारणा है कि शादी के बाद अकेला पन दूर होता है, जबकि सच्चाई तो ये है कि,शादी के बाद कई बार अकेलापन बढ जाता है. एक अजीब से खालीपन का अहसास होने लगता है. अगर विवाह बेमेल है तो, शादी एक ग़लती लगने लगती है.

शादी के बाद अपना, ऐसा मनपसंद काम करते रहना चाहिए ,जो सकारात्मक और उद्देश पूर्ण हो,जिससे आपको ख़ुशी और संतुष्टि तो मिले ही ,साथ ही आपके वजूद  का अहसास  आपको .....और आपके आस-पास वालो को होता रहे.
एक गलत फ़हमी लोगो ने यह भी पाल रक्खी है कि शादी करना सबके  लिए ज़रूरी है. जिस की शादी नहीं हुई उस का जीवन व्यर्थ है. जबकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है,शादी के बिना भी जीवन सार्थक है ......और बहुत खूबसूरत भी.
अर्शिया ज़ैदी
Published in Grehshobha June-2, 2009
(Delhi press publication)