आज भी मुझे याद है वो दिन, जब मुझे दिल्ली के जामिया- मिलिया इस्लामिया में मशहूर शायर कैफ़ी आज़मी की याद में आयोजित,एक प्रोग्राम में शामिल होने का मौक़ा मिला था. इस मौके पर कई मशहूर और बाइज्ज़त हस्तिया शामिल हुई थी,इन हस्तियों में एक बेहद खास चेहरा था ...... ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह का,जो सफ़ेद कुरता -पैजामा पहने एक किनारे खामोश खड़े हुए थे.
जगजीत सिंह को गज़लो का बादशाह कहा जाता है.उन्होंने गज़लों को आसान शायरी में तब्दील किया और सेमी क्लास्सिक बना कर लोगो के सामने पेश किया.1970 के दशक में जब गज़ले नूर जहाँ,मेहदी हसन ,मल्लिका पुखराज,बेगम अख्तर,तलत महमूद जैसे दिग्गज गा रहे थे.उस दौर में,जगजीत सिंह अपनी खूबसूरत आवाज़ और गायकी से उनके बीच जगह बनाने में कामयाब रहे. जगजीत सिंह ने गजलो को अपना आधार बनाया. और गिटार जैसे वेस्टर्न साज और Digital Multitrack Recording का इस्तेमाल करके ग़ज़ल को एक नई पहचान देकर उसे आम लोगो के बीच मशहूर कर दिया .

जगजीत सिंह ने मशहूर गायिका चित्रा को अपनी ज़िन्दगी का हम सफ़र बनाया.और1969 में उनसे शादी कर ली. इन दोनों ने,बतौर हिंदुस्तान की पहली पति -पत्नी की हिट जोड़ी के रूप में,देश और दुनिया में कई बेहेतरीन पर्फोर्मांस देकर मोसकी और गायकी में अपनी अमिट छाप छोड़ दी है.नए रेकॉर्ड्स बनाने वाली उनकी एल्बम THE UNFORGATABLES में इस जोड़े ने अपनी मखमली आवाज़ में ऐसी लाजवाब गजले गायीं है जिनका जादू आज भी लोगो के सर चढ़ कर बोलता है...................
दुनिया जिसे कहते है जादू का खिलौना है , मिल जाये तो मिट्टी है, खो जाये तो सोना है .........
सरकती जाये है रुख़ से नकाब आहिस्ता आहिस्ता , निकालता आ रहा है आफ़ताब आहिस्ता आहिस्ता .......
बहुत पहले से इन क़दमो की आहट जान लेते है , तुझे ए जिंदिगी हम दूर से पहचान लेते है...... वगेह्रह वगेह्रह ....... उनकी ऐसी यादगार गज़ले है जो आज भी हर गजल सुनने वाले की पहली पसंद हुआ करती है .
उन्होंने मिर्ज़ा ग़ालिब,क़तील शिफाई,निदा फाजली,फिराक गोरखपुरी, शाहिद कबीर,अमीर मीनानी,कफील अजहर,सुदर्शन फकीर की शायरी को अपनी खूबसूरत आवाज़ से सजाया. जगजीत सिंह के कई शुरुवाती कामयाब ग़ज़ल अलबमो के टाईटल जहा इंग्लिश में हुआ करते थे ......जैसे Hope, In search,Vision , Love is Blind., Ecstasies, A Sound Affair, Passions.etc.वही बाद में,उनका रुझान उर्दू की तरफ ज्यादा हो गया था. जिसके चलते उन्होंने अपनी ग़ज़ल अलबमो को मेराज,कहकशां,चिराग , सजदा,सोज,सहर,मुन्तजिर,और मरासिम जैसे उर्दू उन्वानो(titles) से सवारा.इसके अलावा उन्होंने हिंदी,उर्दू ,पंजाबी, नेपाली,सिन्धी,बंगाली गुजरती में भी अनगिनत गीत गाये .
इसके बाद भी वो हताश नहीं हुए और बड़े- बड़े एक्टरो के घर सजी - महफ़िलो में भी उन्होंने performance दी,इस उम्मीद पर ........की शायद किसी को उनकी आवाज़ पसंद आ जाये और उन्हें फिल्मो में गाने का एक मौक़ा मिल जाये.आखिर कार उनकी ये कोशिशे रंग लायी और1980 के दशक में प्रेमगीत,साथ साथ, अर्थ जैसी फिल्मो में अपनी मोसकी और खूबसूरत आवाज़ से सबको अपना क़ायल बना दिया .
फिल्म प्रेम गीत(1981)का का मशहूर गीत..." होठो से छु लो तुम,मेरा गीत अमर कर दो"फिल्म साथ -साथ का ...
"तुमको देखा तो ये,ख़याल आया,जिंदिगी धूप तुम घना साया."
फिल्म प्रेम गीत(1981)का का मशहूर गीत..." होठो से छु लो तुम,मेरा गीत अमर कर दो"फिल्म साथ -साथ का ...
"तुमको देखा तो ये,ख़याल आया,जिंदिगी धूप तुम घना साया."
फिल्म अर्थ की मशहूर गज़ले -"तेरे खुशबू में लिखे ख़त मैं जलाता कैसे" ,
"झुकी झुकी सी नज़र बेक़रार है के नहीं.. " "तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
क्या गम है जिसको छुपा रहे हो."
"कोई ये कैसे बताये के वो तन्हा क्यों है."....
जैसे गीत और गजले उनकी आवाज़ और मौसकी से सजे हुए है.इसके अलावा नये दौर की कई फिल्मे जैसे गाँधी टू हिटलर ,कसक, वीरज़ारा , जोगेर्स पार्क,तरकीब, दुश्मन,सरफरोश तुम बिन में भी उन्होंने अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा.जिसकी गजले और गीत लोग अपने favourite collection में बड़े शौक़ से रखते है .
मशहूर शायर गुलज़ार जगजीत सिंह को प्यार से ग़ज़ल जीत सिंह कहा करते थे. गुलज़ार के टी.वी सीरियल मिर्ज़ा ग़ालिब की मशहूर गज़लो को जगजीत सिंह ने अपनी आवाज़ में गा कर बेमिसाल बना दिया है.
"झुकी झुकी सी नज़र बेक़रार है के नहीं.. " "तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
क्या गम है जिसको छुपा रहे हो."
"कोई ये कैसे बताये के वो तन्हा क्यों है."....
जैसे गीत और गजले उनकी आवाज़ और मौसकी से सजे हुए है.इसके अलावा नये दौर की कई फिल्मे जैसे गाँधी टू हिटलर ,कसक, वीरज़ारा , जोगेर्स पार्क,तरकीब, दुश्मन,सरफरोश तुम बिन में भी उन्होंने अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा.जिसकी गजले और गीत लोग अपने favourite collection में बड़े शौक़ से रखते है .
मशहूर शायर गुलज़ार जगजीत सिंह को प्यार से ग़ज़ल जीत सिंह कहा करते थे. गुलज़ार के टी.वी सीरियल मिर्ज़ा ग़ालिब की मशहूर गज़लो को जगजीत सिंह ने अपनी आवाज़ में गा कर बेमिसाल बना दिया है.

अपनी आवाज़ से सबके दिलो पर राज करने वाले जगजीत सिंह, एक ऐसे बेहेतरीन इंसान थे,जिन्होंने कई बार दूसरो की मदद, इतनी ख़ामोशी से कि, कि किसी को पता भी नहीं चला.एक शो ओर्गानायेज़र, जिनका काम ठीक-ठाक नहीं चल रहा था .एक महफ़िल में वो जगजीत सिंह से मिले और उनके साथ शो करने की ख्वाहिश ज़ाहिर की और अपनी परेशानी बताते हुए कहा की "मेरी बेटी की शादी है,और मेरे पास पैसे की कमी है, .... अगर आपके शो की ज़िम्मेदारी मुझे मिल जाएगी,तो मुझे बतौर प्रोफिट दो तीन लाख रूपए बच जायेगे और मुश्किलें आसान हो जाएगी." जगजीत सिंह के पूछने पर ....... उन्होंने पैसे की पूरी ज़रुरत बता दी.
अगले दिन जगजीत सिंह ने उनको को बुलाया और कहा ..... " ठीक है .... आप मेरे लिए शो Organize करें, मै आपके शो में गाऊँगा लेकिन आपको शो इसी हफ्ते मे करना होगा." ये सुन कर वो organizer घबरा गए और कहने लगे ..... "सर इतनी जल्दी शो कैसे organize होगा ...... इसके लिए तो काफी तैयारी करनी होगी. इस पर जगजीत सिंह ने बेफिक्र होकर, मुस्कुराते हुए कहा ...... " फिक्र मत करो सब हो जायेगा. तुम्हारी बेटी की शादी तय हो गयी है .... ये मिठाई का डिब्बा घर ले जाओ और सबका मुह मीठा करो. "ये सुन कर वो साहब,मायूस होकर अपने घर चले गए. घर जाकर जब उन्होंने वो मिठाई का डिब्बा खोला तो हैरान रह गए ... क्योकि उस डिब्बे में उतनी रकम रखी हुई थी, जितनी उन्हें अपनी बेटी की शादी के लिए ज़रुरत थी .
अपने काम को लेकर उनका मानना था की "पहले हमें खुद अपने काम को, अच्छी तरह से समझ कर ,तसल्ली कर लेनी चाहिए,क्योकि जब हमें अपने काम से तसल्ली होगी ,तब हम दूसरो से ये उम्मीद कर सकते है की शायद उन्हें भी हमारा काम पसद आये."
जगजीत सिंह आखरी वक़्त तक ,अपनी सुरीली आवाज़ से महफिले सजाते रहे. बीमार होने से पहले उन्होंने लगातार तीन शो किये थे.जो 16 सितम्बर 2011 को मुंबई के Nehru Science Centre में,17 सितम्बर 2011को दिल्ली के श्री फोर्ट ऑडिटोरियम में और 20 Sep.को देहरादून के The Indian Public School में organised किया गया. वही उन्होंने सर दर्द की शिकायत की थी ,जिसके बाद मुंबई के लीलावती अस्पताल में उनके दिमाग की सर्जरी हुई और उन्हें I.C.U में Ventilator पर रखा गया था .देश और दुनिया में उनके अनगिनत चाहने वाले उनके सेहत मंद होने की दुआ मांगते हुए ये कहते रहे
"उठ के महफ़िल से मत चले जाना
तुमसे रोशन ये कोना कोना है."
"उठ के महफ़िल से मत चले जाना
तुमसे रोशन ये कोना कोना है."
लेकिन फिर भी, उन्होंने किसी की नहीं सुनी और 70 साल की उम्र में 10 अक्टूबर 2011 को अपने सभी चाहने वालो को अलविदा कह कर वो इस दुनिया से चले गये .और उन्हें याद करके हमारे सुनने के लिए छोड़ गये ..... अपना गाया हुआ ,ये गीत ......
चिट्ठी न कोई सन्देश ,
न जाने कौन से देश
कहां तुम चले गये .
अरशिया ज़ैदीकहां तुम चले गये .