रौशनी का दीया
बीते हफ्ते में रौशनी फैलाने वाले त्यौहार दीवाली को हम सब ने बड़ी धूम धाम से मनाया.भगवान श्री राम के14 बरस बाद अयोध्या लौटने की ख़ुशी में जहां हर तरफ रौशनी की जगमगाहट देखने को मिली वही कुछ ऐसे बदलाव भी नज़र आये जिन्होंने ये महसूस करने को मजबूर कर दिया की शायद अब दीवाली सिर्फ अमीर लोगो का त्यौहार बन के रह गया है.
दीवाली की असली मिठास जो शक्कर के खिलौनों खीले,बताशे और मिठाई में हुआ करती थी.रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलना मिलाना अपने आप में एक तोहफा हुआ करता था ...वो सब,अब पैसे की चकाचौंद और दिखावे में कही गुम सा हो होने लगा है. ज़रुरत से ज़्यादा बाज़ार के - commercialization ने इस ख़ूबसूरत त्यौहार के मायने ही बदल डाले हैं
दीवाली में लोगो का रूझान जिस चीज पर सबसे ज्यादा दिखाई पड़ा ,वो थी महगी खरीददारी और तोहफे देने का चलन. यूं तो कोई भी तोहफा अनमोल होता है और अपने प्यार और जज़्बात को बयाँ करने के लिए तोहफे लिए और दिए जाते है.जिसे हर कोई सर- आँखों पर रखता है .बात अगर यहाँ तक रहे तो समझ में आती है लेकिन अब इस महगाई के ज़माने में दीवाली पर गिफ्ट देना एक थोपा हुआ रिवाज भी बनता जा रहा है, जो मिडिल क्लास की जेब पर जहां गैरज़रूरी बोझ डालता है वहीँ बेचारे ग़रीब आदमी को अहसास ए कामतरी का शिकार बना देता है.
अब दीवाली के मौके पर,लोगो ने गिफ्ट के नाम पर रिश्वत देने को एक ख़ूबसूरत बहाना बना लिया है अपने बॉस या client को खुश करना हो या अपने कारोबार में फायदा लेने की मंशा हो.दीवाली के मौके पर दिया गया हर तोहफा जायज़ मान लिया जाता है.जितना बड़ा अपना फायदा उतना बड़ा और महगा तोहफा. अब हर तरफ तोहफे देने की होड़ सी नज़र आने लगी है.
इस चकाचौंध में कही कोई गुम हो रहा है तो वो है गरीब आदमी. हमारे देश में अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ती ही जा रही है.अमीर और ज़्यादा अमीर होते जा रहे है,ग़रीब और ज्यादा गरीब जिनकी जेबें गर्म हैं, जिनके पास खर्च करने के लिए खूब सारे पैसे है वो तो महगे तोहफे और महगी खरीददारी कर के अपनी दीवाली को अच्छी तरह मना लेते है .लेकिन अँधेरा दूर करने वाले इस त्यौहार में, उस ग़रीब तबके का क्या, जिसके पास मामूली ख़रीददारी करने के लिए भी पैसे नहीं होते.जिसे अँधेरे घर में जलाने के लिए थोड़े से दिए मिल जाये तो उसके लिए काफी होता है .मिठाई के नाम पर खीले,बताशे और शक्कर के खिलौने ही नसीब हो जाये तो उसका त्यौहार ख़ुशी ख़ुशी मन जाता है.
क्या हम अपने फूज़ूल खर्च को रोक कर कुछ दीये उनके घरो में नहीं जला सकते जिनके घर अँधेरा है ? कुछ मिठाई,कुछ कपड़े उनके लिए नहीं खरीद सकते जिनको ये मयस्सर नहीं ? अगर हम सब थोड़ी थोड़ी कोशिश करें तो ये न मुमकिन भी नहीं ....... सबकी तरफ से की गयी छोटी छोटी कोशिशें किसी घर में अँधेरा नहीं रहने देंगी.
ऐसी ही काबिले तारीफ पहल की है ....हिंदुस्तान के तीसरे सबसे अमीर भारतीय और विप्रो के chairman अज़ीम प्रेम जी ने .जो देश भर के गरीब बच्चो तक इल्म की रौशनी पहुचने के लिए अपने पैसे से,ऐसे स्कूल खोलने जा रहे है,जहां ग़रीब बच्चो को प्री स्कूल से लेकर 12 क्लास तक की education बिल्कुल मुफ्त दी जाएगी और जिस चीज़ पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जायेगा वो होगी ...... quality education.
धने अँधेरे में इल्म की रौशनी का दिया जलाने वाले अज़ीम प्रेम जी की इस पहल के बाद इंशाल्लाह और हस्तियाँ भी इस मुहिम में शामिल होंगी और गरीबी और जहालत के अँधेरे को दूर करने के लिए अनगिनत दिए जलाएँगी.
"कभी कभी चलो दिल से अमीर हो जायें
किसी गरीब के घर में दिया जला आयें ."
अरशिया ज़ैदी
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