26 जून 2011की बात है.दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया में National Eligibility Test(NET) के exam में मेरी ड्यूटी लगी हुई थी.मैं कंट्रोल रूम में authorities से Instructions मिलने का इन्तिज़ार कर रही थी, इतने में एक 26-27 साल का नौजवान कमरे में दाखिल हुआ,गोरा रंग, दरमयाना क़द,चेहरे पर हलकी सी दाढ़ी,और self confidence से दमकता चेहरा..... ब्लू कलर की शर्ट और स्काई ब्लू कलर की जींस पहने इस लड़के ने कंधे पर एक rucksack बैग डाल रखा था .

Authorities ने मेरा नाम पुकारा और मो.आतिफ का टेस्ट पेपर और आंसर शीट पकडाते हुए इस student के साथ रूम नंबर-5 में जाने को कहा.
रूम नंबर-5 दूसरी मंजिल पर था,जिस पर सीढ़ीयो से जाना था.आतिफ ने बिना मेरी मदद लिए, आहिस्ता-आहिस्ता खुद सीढ़ीया चढ़ी.पेपर शुरू होने में सिर्फ15 मिनट बाक़ी थे.उसने फुर्ती से अपना बैग खोला और एक एक्सटेनशन कॉर्ड ,टेबल लेम्प, बहुत मोटे लेंस का चश्मा,ब्लाइंड स्टिक और Magnifying lens निकाल कर मेज़ पर रख दिया ... फिर मुझसे पूछा.......
''क्या यहाँ कही Extension cord लगाने की लिए socket है? मुझे टेबल लेम्प का प्लग लगाना है कमरे में रौशनी कम है ... मुझे ठीक से दिखेगा नहीं."
मैंने इधर उधर देखा,स्विच बोर्ड मुझे कही नज़र नहीं आया,किसी fault की वजह से AC भी नहीं चल रहा था.इसलिए गर्मी की वजह से हाल और भी ज़्यादा बेहाल हो गया था.शिकायत करने पर बिजली वाला आया लेकिन वोAC की fault नहीं ढूढ सका हाँ उसने इतनी मेहरबानी ज़रूर की कि उसने हम लोगो को,उसी हाल नुमा कमरे के दूसरे हिस्से में बैठा दिया जहांACचल रहा था.
यहाँ आते ही गर्मी से थोड़ी राहत मिली. मैंने जल्दी जल्दी उसका सामान दूसरी टेबल पर रखवा कर टेबल लेम्प का प्लग सामने लगे सोकेट में लगा दिया.आतिफ ने मुस्कुरा कर थैंक्स कहा और मुझसे अपनी Answer sheet में उसका नाम,रोल नंबर वगेहरा भरने की request की.आतिफ का admit card देख कर मैंने उसकी सारी details कॉपी में भर दी.इन सारी formalities को पूरा करने में15मिनट और लग गए.पेपर शुरू हो चुका था और आतिफ ने पेपर लिखना अभी शुरू भी नहीं किया था.
पहला पेपर objective question-answer का था.आतिफ ने कहा
"मैम आप पहले मेरे लिए question पढ़ें और फिर नीचे लिखे उसके answer,मैं जो answer बताऊ ... आप उसे आंसर शीट में टिक कर दीजिये.''
मैं उसके लिए invigilator/writer दोनों की तरह काम कर रही थी.वो मुझे आंसर बता रहा था और मैं टिक करती जा रही थी.कई बार तो वो मेरे आंसर के options पढने से पहले ही झट से जवाब बता देता,फिर चाहें वो सब्जेक्ट General-knowledge का हो,Reasoning का हो या फिर हो English,हर Subject की उसने ज़बरदस्त तैयारी कर रखी थी.वो भी आँखों के साथ दिए बिना! उसने15 min.देर से पेपर शुरू करने के बाद भी तय वक़्त में पेपर पूरा कर लिया था.जो वाकई क़बीले तारीफ़ था
पहले पेपर के बाद एक घंटे का ब्रेक था.मैंने आतिफ से पूछा कि
"क्या आप 2nd पेपर शुरू होने तक यहीं रूम में बैठ कर इन्तिज़ार करेंगे"?
"नहीं मैं इस ब्रेक में सबसे पहले मस्जिद जाऊँगा,नमाज़ पढूंगा तब कुछ खाऊँगा"उसने मुस्कुरा कर जवाब दिया.
M.Com में गोल्ड मेडलिस्ट रह चुका ये लड़का अब P.hd कर रहा था न वो मायूस था और न ही हताश .... बस थी तो कुछ बन जाने की लगन और जूनून.उसका ये Never Give Up वाला positive attitude कही न कही मुझे भी inspire कर रहा था.
2nd paper descriptive था जिसमे लम्बे answers लिखने थे.उस वक़्त आतिफ को देख कर मैं यही सोच रही थी की अब ये कैसे लिखेगा लम्बे answers! . ..मुझे ही लिखने होंगे....तेज़ी से.अभी मैं अपने सवालो में ही उलझी थी कि मैंने उसको एक magnifying lens लगा कर पेपर पढने की कोशिश करते हुए देखा.
"इस से मेरी नज़र का धुंधलापन कुछ कम हो जायेगा और आसानी से पेपर लिख लूँगा" मेरे अनकहे सवाल का जवाब देते हुए उसने कहा.फिर बेहद मोटे लेन्स का चश्मा अपनी आखों पर चढ़ा कर मुझसे सवाल पढने को कहा.
मैंने आतिफ को question पढ़ कर सुनाया जिसे उसने दोहराते हुए समझने की कोशिश की फिर दोबारा मुझसे सवाल पढ़ने को कहा,इस तरह मैंने उसके हर सवाल को रुक-रुक कर कई-कई बार पढ़ा.सवाल को अच्छी तरह समझने के बाद उसने कॉपी खोलते हुए मुझसे पूछा...
."मैंम कॉपी के पेज पर लाइन कहा से शुरू हो रही है".
.मैंने उसकी उंगली पेज की लाइन पर रख दी....उसने पूरे पेज को हाथ से छु कर अंदाज़ा लगाया.
फिर अगला सवाल किया-"एक answer लिखने के लिए कितने पेज की जगह दी गयी है"?और मेरे बताते ही बिना देर किये उसने तेज़ी से लिखना शुरू कर दिया.
आम तौर पर लोगो की hand writing जल्दी जल्दी लिखने में अक्सर टेडी मेढ़ी और गन्दी हो जाती है. मुझे इस बात की curiosity थी की कि आतिफ कैसे लिखेगा? ...और ये देख कर मैं हैरान रह गयी की वो बड़े आराम से लिख पा रहा था.उसकी handwriting शुरू से लेकर आख़िर तक एक सी थी,एक दम साफ़-सुथरी, ना तो कोई लव्ज़ लाइन के बाहर निकला था और न ही कोई लाइन टेढ़ी -मेढ़ी हुई थी.
आतिफ लिखते-लिखते बीच-बीच में टाइम भी पूछता जा रहा था ताकी पेपर छूटे नहीं ...वो सर झुकाए तेज़ी से लिखता जा रहा था.और बीच-बीच में बातें करके अपना दर्द भी बांटता जा रहा था.
"मैम मेरी नज़र बचपन में कमज़ोर नहीं थी पर धीरे धीरे कमज़ोर होने लगी और चश्मा लग गया फिर कुछ वक़्त के बाद चश्मे से भी दिखना बंद हो गया,अब मैं magnifying lens से पढ़ता हूँ.मेरी इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है ... इस बीमारी में नज़र धीरे धीरे कमज़ोर हो जाती है और कुछ वक़्त के बाद पूरी तरह से दिखना बंद हो जाता है".
ये कह कर उसने एक आह भरी और चुप हो गया ..... कुछ लम्हों तक माहौल में ख़ामोशी की बर्फ सी जमी रही......
फिर कुछ देर बाद उसने ख़ामोशी तोड़ते हुए आगे बताया ....
"पता है मैम,मेरे 'सर' जिनके अंडर मैं Ph.d कर रहा हूँ उन्हें भी same problem है मेरी तरह .... अब उन्हें दिखाई देना बिलकुल बंद हो गया है मेरे साथ भी ऐसा ही होगा.पर सोचता हूँ कि तब-तक मैं settle हो जाऊ.Net का इम्तेहान तो मैं पहले भी पास कर चुका हूँ अब दुबारा Junior Research fellowship(JRF) के लिए ये exam दे रहा हूँ ... ताकि मुझे scholarship मिल सके और मैं आगे की पढाई कर सकू. .."
मैं दुःख और बेबसी से उसकी दर्द भरी दास्तान सुनती जा रही थी. मेरे पास लव्ज़ नहीं थे जिनसे मैं उसको तसल्ली देती ....और अगर तसल्ली देती भी तो क्या कहती ?
ये पेपर भी उसने तय वक़्त में पूरा कर लिया.कॉपी मुझे दे कर उसने धीरे धीरे एक-एक करके अपना सामान बैग में रखा और हम नीचे आ गए.जब मैं उसकी कॉपी जमा कराने कंट्रोल-रूम जाने लगी तो उसने कहा....
"मैम आपने मेरी अच्छी help की.पूरे question paper को अच्छी तरह से explain किया ... प्लीज़ आप मेरे लिए दुआ करिएगा कि मैं इस एक्साम को पास कर लूं."
मैंने मुस्कुरा कर"आमीन" कहा ... और कंट्रोल रूम की तरफ बढ़ गयी.
अरशिया ज़ैदी
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