23 Sept 2012

chadhawa

                                         चढ़ावा 

बीबीसी   न्यूज़  ने   कुछ  दिनों  पहले  रिपोर्ट दिखाई थी  जिसके  मुताबिक  दान  करने में हिन्दुस्तान  का 93  वां  स्थान  है . इस  में  कोई  दो राय  नहीं,  की हमारे मुल्क में  लोग  खुले दिल  से  मस्जिद - मंदिर बनवाने  के लिए  लाखो रूपए  दान कर  देते  है  लेकिन  जब  स्कूल   कॉलेज, या  अस्पताल  के  लिए   दान   करने  की  बारी   आती  है . तो  लोग  क़दम  आगे  नहीं बढ़ाते . ऐसा  नहीं  है की  हमारे देश  में लोगो के पास पैसा  की कमी   है। जहां   एक  तरफ , हमारे  देश  में  अमीर  लोग  अमीर होते जा रहे है ... तो  वही    ग़रीब लोग  और   ज़्यादा  ग़रीबी  के  बोझ  से  दबते जा रहे  हैं ।

अरे  जनाब , इंसानियत  भी  एक  तरह की  इबादत है  बस  इसके लिए   आपको  अपना   बड़ा  दिल करने की ज़रुरत है। देश में हॉस्पिटल  की  कमी है , बच्चो के  पढने के  स्कूल कम है. पैसे न होने की वजह से  बच्चे  अपनी  पढ़ाई  पूरी  नहीं कर पाते। लोग  बीमारियों का इलाज़  इसलिए नहीं करवा पाते  क्योकि  उनके  पास  इलाज  के पैसे  नहीं है,  गरीबी  औरतों के  बच्चे यूं  ही  सड़को  पर पैदा  हो जाते है.....  और  इंसानियत  शर्म सार हो जाती है .

यहाँ  मैं  उत्तर  प्रदेश  के  ऐतिहासक  शहर  मेरठ    की  तारीफ़   ज़रूर करना  चाहूगी  जहां मुझे ये  देख  कर,   बहुत  अच्छा  लगा  था , की   आम लोगो   की  सहुलियतों  के  लिए अमीर  और पैसे  वाले  लोगो ने   ,  दिल  खोल कर  दान  दिया  है।   बेहेतरीन   charitable   अस्पताल  स्कूल,  कॉलेज , सराए  जैसी बुनियादी  सहूलियतें आम - ग़रीब  लोगो के  लिए    मुहैया  कराई  है। जिसका  भरपूर  फ़ायदा   उन्हें  मिल  रहा  है  . वहाँ  इंसानियत और  समाज  के  हक़  में  दान करना  एक  परंपरा  रही  है। जो  की  देश  के   हर  ग़ाव  और  हर   शहर  में  कराये    जाने  की   ज़रूरत  है .

हमारी  कामयाबी   में   हमारे  समाज  का  भी  बहुत  बड़ा  हाथ  होता  है।  यहाँ  की  मिटटी  में   परवरिश   पाकर   हमें  नाम  और पहचान मिलती  है  बुनियादी  सहूलियते  हमारी  जिंदिगी   को आसान  बनाती  हैं।और हम आगे  बढ़ पाते हैं ........ तरक्क़ी  कर पाते हैं , और इसके  बाद  बारी  आती है  हमारी .... समाज को  वापस  करने की , और  तब   हमें  बड़े  खुले  दिल से,  इंसानियत  के  हक़  में  चढ़ावा  देना  चाहिए। ताकी  बाक़ी लोगो  तक   आम  बुनयादी सहूलियतें   पहुँच सके  और  उनकी जिंदिगी   बेहतर  बन सके .
                       
                       चढ़ावा 

मंदिर - मस्जिद  बनवाने में खूब  चढ़ावा  देते हो
मन्नत  पूरी  कर  दे मौला ,यही  मांगते  रहते हो।

ऊपर  वाले  ने  क्यों  तुमको,  दिया है  इतना, ये सोचो
इंसानियत  का  एक  क़र्ज़ है  तुम पर, जिसे तुम्हे   चुकाना है

बीमारों को  राहत  देने  तुम्हें  अस्पताल  बनवाने  हैं
स्कूलों को  खोल  के  उसमें बच्चों को पढ़वाना  है।

समाज से  तुमको  मिला  बहुत  कुछ,  अब देने  की बारी  है,
सुनो  ध्यान से , इस समाज  ने फिर  से तुम्हे पुकारा है।

हम  सब के,  कुछ- कुछ करने से,  देश  तरक्क़ी  कर  लेगा  
लोग  सुखी  हो  जायें  देश के, ख़ुआब  यही हमारा  है। 

अरशिया  ज़ैदी 



5 Sept 2012

A Day With My Teacher


                       एक  दिन अपनी टीचर  के साथ 



A day  with my Teacher
अगर  आपके  स्कूल  - कॉलेज टाइम  की आपकी favourite टीचर  आपके  घर  आ  जाएं   और आपके साथ   कुछ  घंटे  गुज़ारे तो आप कैसा महसूस  करेंगे ....  ?  बहुत  excited,  बहुत  ख़ुशी  महसूस  करेंगे  न ,कुछ  ऐसा   ही  बीते  सन्डे  में  मैंने  महसूस किया था । 
पता  है  आपको ,बीते सन्डे  मैं  मेरे  कॉलेज टाइम की favorite  टीचर  और  मेरी  रहनुमा  मिसेज़ वसुमती अग्निहोत्री  अपने   बच्चों  के  साथ  हमारे  घर आयी थीं . तक़रीबन  10-15 साल के बाद मैं  उनसे मिल रही  थी .....बहुत  खुश  थी  मैं . 
उनसे  मेरा  रिश्ता  तब  का है  जब  मैं  11th  क्लास  में  पढ़ती  थी और  वो  हमारी  हिस्टरी टीचर  थी . उन्हें   हम  वसु  दीदी  कहते    थे  क्योंकि   हमारे  कॉलेज  में  टीचर  को  दीदी  बुलाया जाता  था .

एक  सुलझी हुए सोच , निडर और बिंदास  अंदाज़  और हमेशा  अपने  स्टुडेंट्स को  सुनने -समझने और  मदद  करने  को तैयार  रहने  वाली  रौबदार  शक्सियत   रही   हैं  वसु  दीदी  । उन्हें  शेरो -शायरी  का  भी  शौक़  था , गाती  भी  अच्छा  थी, इसलिए  कॉलेज में  होने वाली Extra  Curricular  Activities  में  उनकी   सुरीली   आवाज़ में  गीत  और  गज़ले  भी  सुनने  को  मिलते  थे।

 वो  अपने  स्टुडेंट्स  का बहुत  ख़याल  रखती  थी ,बात  उन  दिनों  की  है  जब  हमारे 12th के  बोर्ड   के  इम्तिहान  हो रहे थे .....  मैं  इम्तिहान दे रही थी .... और  मुझे   ठण्ड  लग रही थी .... वसु  दीदी  क्लास में  स्टुडेंट्स  को  चेक  करने  आयी   थी, उन्होंने  मुझे  देखा ...और  बिना  कुछ  कहे  अपनी   शाल  उड़ा  दी.  हॉल  में   बैठी  बाक़ी  लडकियाँ  तिरछी  निगाहो  से   मेरी  तरफ  देखने  लगी  थी . क्योकि  वसु दीदी  की  रौबदार  शक्सियत  से  लड़कियां  जल्दी  उनसे  बात  करने  में  झिझकती  थी . मुझे  भी  अपनी  पसंददीदा  टीचर  से  मिला  ये  प्यार  और  अहमियत  बहुत  अच्छी  लग  रही  थी  और  इस  वाक़ये  के  बाद  मैं  जज़्बाती  तौर  पर  उनसे  जुड़ने  लगी  थी .
   
उनकी  जिंदिगी  का  एक  पहलु  ये  भी  है  की  वो   इंसानियत  के  नाते  हमेशा  दूसरो की  मदद करने  को तैयार  रहती थी। इंसानियत  की  एक मिसाल  उन्होंने  तब   क़ायम  की, जब  उन्होंने Muscular  Dystrophy  जैसी  बीमारी ,(जिसमे  मरीज़  हिलडुल  भी  नहीं  पाता) की  एक  Patient  पदमा  अग्रवाल  की लम्बे  वक़्त  तक   ख़िदमत  की   और  उनका  ख़याल  रखा. उनके  दर्द  को  कम  करने  और  उनका  हक़  दिलवाने  के लिए  न  जाने  कितने  लोगो  से लड़ी , दुश्मनी  मोल ली ... लेकिन  पीछे  नहीं   हटी.

वसु दीदी  ने पदमा दीदी  को  कमरे  की  चार  दिवारी  से निकाला,  और  उन्हें  हरे - भरे  पार्क  की  सैर  से  लेकर  पहाड़ो तक की सैर  करवायी. वसु  दीदी  ने  उन्हें  ख़ुश  रखने  और उनके  होटो पर मुस्कराहट लाने की  हर मुमकिन  कोशिश  की .जिसमे  वो कामयाम रही .

वसु  दीदी  ने  ही मेरी  मुलाक़ात  पदमा  दीदी  से करवाई  थी,जो उम्र  में  मुझसे  काफी  बड़ी  थी, मेरा  मानना  है की दोस्ती के लिए उम्र नहीं  बल्कि  सोच  और ख़याल मिलना  ज़रूरी  होता है. पदमा दीदी  मेरी  मुलाक़ात कब  दोस्ती  के गहरे  रिश्ते  में बदल गयी  मुझे  पता  ही नहीं  चला , पद्मा दीदी  का  दर्द  मुझे  भी  बहुत  दुःख  देता था ... और मैं  दिल  से  उनके  लिए  कुछ  करना चाहती थी। यहाँ  मेरे मम्मी - डैडी  से,  विरासत  में  मिली  इंसानियत   और  वसु - दीदी की  Inspiration ने   मेरे  हौसले  बुलंद किये  .... जिसकी  वजह  से  मैं  भी  पदमा  दीदी  की  थोड़ी  बहुत  ख़िदमत  कर  सकी.

पदमा  दीदी  की  बारे  में  क्या  बताऊ , बस  इतना  ही  कह सकती हूँ  की  उन  जैसे  लोग  ख़ुदा  बहुत कम  ही बनाता  है ,उनकी Death  से  एक  दिन  पहले  ही  मैं  उनसे  मुलाक़ात  करने  गयी  थी  और अगले दिन ही पता चला था की वो इस  दुनिया से चली गयी  हैं . उनका  नाम  आते  ही  आज  भी  आखें  नम हो जाती है . उनसे वो आख़री  मुलाक़ात  और  उनके  प्यार का अहसास  आज  भी  मेरे  साथ  है .   

इसके  बाद  जब  वसु  दीदी   पहली बार  हमारे  घर  आयी  थी , उससे   जुडी  ख़ूबसूरत   याद  आज  भी  मेरे  ज़हन  में  ताज़ा  है  , उन्हें  अपने   घर  में   देखकर  मेरी  ये  समझ  में   नहीं  आ  रहा  था  की उन्हें कहां  उठाऊ .... कहाँ  बिठाऊ . जब  वो  मेरे  मम्मी - डैडी   से  मिली  तो उन्हें  और भी  ज़्यादा  अच्छा  लगा  और   फिर  हमारे  घरेलु   ताल्लुक़ात  हो  गए थे  और  हम  अक्सर  एक  दुसरे  के  घर  आने -जाने  लगे ,इसके  बाद  हम  सब  अपनी- अपनी  ज़िन्दिगियो  में  मसरूफ होते  चले गए ... मैं  अपनी  पढ़ाई   में  .... और   वसु  दीदी  कामयाबी  की  ऊचाईयों  को  छूती  चली गयी, इंटर  कॉलेज  की टीचर   से  वो   प्रिंसिपल  बनी  प्रिंसिपल  से  District  Inspector Of  School  बनी  और  फिर लखनऊ   में Deputy  Director  Of  Education  की  पोस्ट  को  बाख़ूबी  संभाला  और  जुलाई  2011 को  Deputy Director  की  पोस्ट  से  रिटायर  हुई .

इतने  लम्बे  अरसे के बाद  हम  मिल रहे थे .....  यक़ीन  जानिये ,मिल कर  ये  बिल्कुल  भी नहीं  लगा  की  जैसे  हमें  15  साल  के बाद  मिल  रहे  हैं । वसु  दीदी   आयी..... आराम  से  बैठी, अपनी  तजुर्बेकार  नज़रों  से  हमारे  चहेरों  को  पढ़ती   रही ---- प्यार  से  मुस्कुराती  रही  . वो  लखनऊ  से मशहूर  चिकन  के   कुर्तो  के  रूप  में ,  हम सब  के  लिए  अपना  प्यार  समेट  कर  लाई  थी  जो  हम  सब  को   पसंद  आया , और हमने  सर  झुका कर  क़ुबूल किया  . उनके  बच्चे  और  मेरा  भाई  शैली (अली ) और  मेरी  बहन  सिम्मी  (हिना), हम  सभी  एक- दुसरे से  मिल कर  बेहद  खुश थे. 
मैंने  उनके  लिए  अच्छा  सा लंच  तैयार  किया  जिसे  हम  सब  ने  साथ  खाया  खाने के बाद  गरमा - गरम  चाय  और शेरो -शायरी  का  भी  दौर चला  जिसे   देख  कर पुराने  दिनों  की यादें  ताज़ा  हो गयी  बातो - बातो  में  ये  पता  ही  नहीं  चला  कब  तीन  घंटे  बीत  गए ..... फिछले कई  सालो का  स्टॉक था .... बातो  का ... इसलिए  दिल  किसी  का  भी  नहीं  भरा  था  न  उन लोगो का .... न ही हमारा  ....फिर  भी  उन्हें जाना था  इसलिए फिर मिलने  का  वायदा  करके  भारी  दिल  से  उन्हें  खुदा  हाफ़िज़  कहा .
कुछ  रिश्ते  ऐसे  होते  है   जिनमे  बेहद  अपना  पन  होता  है  जहां  आपकी  सोच  और  ख़याल  इतने  मिलते  होते  है,  की  आपको किसी  तसन्नो , किसी बनावट या  किसी  शो ऑफ   की  ज़रुरत  नहीं होती, कुछ  समझाने  की ज़रूरत  नहीं  होती, बिना कहे  बाते  समझ  ली  जाती हैं .
 a day with my teacher, on teacher's day
A day  with my Teacher
तब ....उस  रिश्ते  की अहमियत  और भी ज्यादा बढ़ जाती है  जब  रिश्ता एक " टीचर  और एक स्टुडेंट" का  हो मै उन   ख़ुशकिस्मत  स्टुडेंट्स  में  से एक हूँ .जिसे अपनी टीचर मिसेज़  वसुमती   अग्निहोत्री  के रूप  में  एक  ऐसा  गाइड  मिला  है , जिन्होंने  एक  रहनुमा बन  कर  मुझे  हमेशा  सही  रास्ता दिखाया  और   आगे  बढ़ने  का   हौसला  दिया .
अरशिया  ज़ैदी