चढ़ावा
बीबीसी न्यूज़ ने कुछ दिनों पहले रिपोर्ट दिखाई थी जिसके मुताबिक दान करने में हिन्दुस्तान का 93 वां स्थान है . इस में कोई दो राय नहीं, की हमारे मुल्क में लोग खुले दिल से मस्जिद - मंदिर बनवाने के लिए लाखो रूपए दान कर देते है लेकिन जब स्कूल कॉलेज, या अस्पताल के लिए दान करने की बारी आती है . तो लोग क़दम आगे नहीं बढ़ाते . ऐसा नहीं है की हमारे देश में लोगो के पास पैसा की कमी है। जहां एक तरफ , हमारे देश में अमीर लोग अमीर होते जा रहे है ... तो वही ग़रीब लोग और ज़्यादा ग़रीबी के बोझ से दबते जा रहे हैं ।
अरे जनाब , इंसानियत भी एक तरह की इबादत है बस इसके लिए आपको अपना बड़ा दिल करने की ज़रुरत है। देश में हॉस्पिटल की कमी है , बच्चो के पढने के स्कूल कम है. पैसे न होने की वजह से बच्चे अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते। लोग बीमारियों का इलाज़ इसलिए नहीं करवा पाते क्योकि उनके पास इलाज के पैसे नहीं है, गरीबी औरतों के बच्चे यूं ही सड़को पर पैदा हो जाते है..... और इंसानियत शर्म सार हो जाती है .
यहाँ मैं उत्तर प्रदेश के ऐतिहासक शहर मेरठ की तारीफ़ ज़रूर करना चाहूगी जहां मुझे ये देख कर, बहुत अच्छा लगा था , की आम लोगो की सहुलियतों के लिए अमीर और पैसे वाले लोगो ने , दिल खोल कर दान दिया है। बेहेतरीन charitable अस्पताल स्कूल, कॉलेज , सराए जैसी बुनियादी सहूलियतें आम - ग़रीब लोगो के लिए मुहैया कराई है। जिसका भरपूर फ़ायदा उन्हें मिल रहा है . वहाँ इंसानियत और समाज के हक़ में दान करना एक परंपरा रही है। जो की देश के हर ग़ाव और हर शहर में कराये जाने की ज़रूरत है .
हमारी कामयाबी में हमारे समाज का भी बहुत बड़ा हाथ होता है। यहाँ की मिटटी में परवरिश पाकर हमें नाम और पहचान मिलती है बुनियादी सहूलियते हमारी जिंदिगी को आसान बनाती हैं।और हम आगे बढ़ पाते हैं ........ तरक्क़ी कर पाते हैं , और इसके बाद बारी आती है हमारी .... समाज को वापस करने की , और तब हमें बड़े खुले दिल से, इंसानियत के हक़ में चढ़ावा देना चाहिए। ताकी बाक़ी लोगो तक आम बुनयादी सहूलियतें पहुँच सके और उनकी जिंदिगी बेहतर बन सके .
चढ़ावा
मंदिर - मस्जिद बनवाने में खूब चढ़ावा देते हो
मन्नत पूरी कर दे मौला ,यही मांगते रहते हो।
ऊपर वाले ने क्यों तुमको, दिया है इतना, ये सोचो
इंसानियत का एक क़र्ज़ है तुम पर, जिसे तुम्हे चुकाना है
बीमारों को राहत देने तुम्हें अस्पताल बनवाने हैं
स्कूलों को खोल के उसमें बच्चों को पढ़वाना है।
समाज से तुमको मिला बहुत कुछ, अब देने की बारी है,
सुनो ध्यान से , इस समाज ने फिर से तुम्हे पुकारा है।
हम सब के, कुछ- कुछ करने से, देश तरक्क़ी कर लेगा
लोग सुखी हो जायें देश के, ख़ुआब यही हमारा है।
अरशिया ज़ैदी