इंसानी रिश्ते
जिंदा रखते हैं, इंसान को इंसानी रिश्ते,
जिंदा रखते हैं, इंसान को इंसानी रिश्ते,
कितने नाज़ुक हैं मगर ,हाय ये इंसानी रिश्ते
समां कुछ ऐसा बंधा है, आज रिश्तों में ,
नहीं टिकता कोई रिश्ता, अब उम्र भर के लिए
फिज़ा कुछ ऐसी चली है, आज खुदगर्जी की
सभी है डूबे हुए, सोचने में, सिर्फ अपने लिए
तमाम उम्र किसी रिश्ते को निभाने के लिए
बहुत ज़रूरी है, ऐतबार दोनों के लिये
वफ़ा की शर्त भी, लाजिम है दोस्ती के लिए
मगर ये बात पुरानी है,अब सभी के लिए
अरशिया ज़ैदी
Published in Hindi Magazine MUKTA(Delhi Press)2003
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