22 Dec 2011

Ek House Wife ki Ahmiyat

                  एक हाउस वाइफ की अहमीयत 


आज वसुंधरा जब इंग्लिश स्पीकिंग का क्लास करने आई तो कुछ उदास सी लग रही थी,मैंने वजह पूछी तो अपना दर्द बया करते हुए कहने लगी कि "क्या बताऊ,एक House Wife होने की सज़ा भुगत रही हूँ.सुबह से लेकर रात तक घर के लोगो के लिए तमाम जिम्मेदारियों को निभाने में लगी रहती हूँ .....अपनी थकान की परवाह किये बगैर सब की छोटी से छोटी ज़रुरत का ख्याल रखती हूँ लेकिन इसके बावजूद भी मेरी मेह्नत और कोशिशो को पूरी तरह से नकार दिया जाता है,जबकि मेरी देवरानी,जो एक Working Woman' तो है लेकिन घर और घर के लोगो के लिए बिल्कुल  लापरवाह है फिर भी घर के सभी लोग उसे अपने सर पर बैठा कर रखते है और उसका खास ख्याल रखते हैं. 
              बात तो सही है वसुंधरा की,पता नहीं क्यों, हमारी सोच इतनी baised हो गयी है.जहा हम Working Women को ज़रुरत से ज्यादा अहमियत देने लगे है, वही हम घर की Life Line कही जाने वाली  house wives की अहमियत को सिरे से नकार रहे है .....जैसे घर में रहने वाली औरते कुछ करती ही नहीं ऐश करने के अलावा !
           बेशक,आज के दौर में औरतों का financially independent होना और अपनी शक्सियत को पहचान देना बेहद ज़रूरी है लेकिन जनाब,घर-गृहस्थी की देख भाल करना भी कोई बच्चो का खेल नहीं है,बहुत हुनर मंदी का काम है ये ..... जिसे बिल्कुल भी नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता.घर परिवार को ताख़ में रखकर सिर्फ करियर और पैसा कमाने को ही अपनी ज़िन्दगी का मकसद समझ लेना एक सेहत मंद सोच की निशानी नहीं कही जा सकती है .
                    ज़रा उन लोगो से पूछिए,जिन्हें रोज़ घर लौटने पर दरवाज़े  पर लगा ताला मुह चिढ़ाता हुआ मिलता है और घर के अंदर दाखिल होते ही तन्हाई और अकेलापन उनका स्वागत करता है .....एक गिलास पानी देने वाला भी कोई नहीं होता,खुद ही पानी लेकर,सूखा गला तर करना पड़ता है.खुशनसीब है आप.... अगर आपके घर लौटने पर कोई आपका इन्तिज़ार करता हुआ मिलता है.   
            एक 'घरेलू औरत',या 'होम मेकर' किसी भी घर के लिए एक वरदान होती है,जो घर के लोगो को सुख और आराम देने के लिए दिन-रात घर के कामो में लगी रहती है.और अपनी नेक कोशिशो से ईंट-पत्थर के मकान को ख़ूबसूरत घर में बदल देती है.जिन बेशकीमती जज्बातों और feelings के रहते वो यह सब करती है,उसकी कोई भी कीमत नही लगायी जा सकती है.
             जो जायका घर के बने खाने में होता है वो जायका आपको दुनिया के किसी होटल के खाने में नहीं मिल सकता,और रोज़ रोज़ जंक फ़ूड खा-खा के तो गुज़ारा भी नहीं किया जा सकता.अच्छे-अच्छे लज़ीज़ खाने पकाना भी एक आर्ट है,जिसमे अच्छा खासा वक़्त लग जाता है और एक House Wife बड़े जतन और प्यार से घर के सभी लोगो की पसंद-नापसंद का ख़याल रखते हुए लज़ीज़ खाना तैयार करती है.जिसे हम चट्खारे ले ले कर खाते हैं. 
 छोटे बच्चे जो कच्ची मिटटी की तरह होते है,जैसे ढालो ढल जाते है.माँ बच्चे की सबसे पहली और सबसे बेहतरीन टीचर होती है जो न सिर्फ बच्चो की सबसे अच्छी देखभाल और परवरिश कर सकती है बल्कि उसे अच्छे संस्कार भी सिखाती है.अगर माँ ही घर पर नहीं रहेगी तो बच्चो की अच्छी परवरिश कैसे होगी,उन्हें अच्छा-बुरा,सही-गलत का फर्क कौन समझाएगा?  वो भी आज के दौर में जब joint family ख़त्म हो चुकी हैं और nuclear family का ज़माना है.
     ऐसा पैसा किस काम का,जब आपकी नन्ही सी बेटी को आपकी सबसे ज्यादा ज़रुरत हो,उस वक़्त आप उसे रोता बिलखता छोड़ कर काम पर चली जायें,अपने बच्चो को बड़ा होता हुआ न देख सके ......उनकी  किल्कारिया ना सुन सके और आपके होते हुए भी आपके मासूम बच्चो की परवरिश creche या नौकरों के हाथो में हो.
             घर में माँ की नामौजूदगी कई बार बच्चो को चिडचिड़ा,जिद्दी और बत्तमीज़ बना देती है.छोटे बच्चो को creche और नौकरों के भरोसे छोड़ना  कई बार कितना खतरनाक हो जाता है,उनके साथ कैसे कैसे संगीन हादसे हो जाते है इसकी ख़बरे तो आये दिन अखबारों की सुर्खियाँ बनती ही रहती है.
            इसके अलावा आज कल स्कूल जाने वाले बच्चो को भी तरह तरह के assignment करने को दिए जाते है जिसमें बच्चो को guidance और help की ज़रुरत होती है.ऐसे में अगर माँ ही घर पर नहीं होगी .... हेल्प के लिए,तो बच्चो की पढ़ाई पर भी बुरा असर पड़ सकता है.
            एक House Wife के घर पर रहने से घर के दरवाजे हर वक़्त मेहमानों के लिए खुले रहते है.मेहमानों को घर में आने के लिए वक़्त की पावंदी नहीं झेलनी पड़ती,और चाय की चुस्कियो के साथ एक-दुसरे से मिलना-जुलना और गपशप के मज़े लेना भी आसान हो जाता है.उनके घर में रहने से नौकरों पर भी निगरानी बनी रहती है और वो अपने काम को करने में लापरवाही नहीं कर पाते,नहीं तो घर के सामान को बेदर्दी से इस्तेमाल करने और तोड़ने फोड़ने में इन्हें ज़रा भी हिचक नहीं होती.  
         घर में रहने वाली एक घरेलू औरत की अहमियत का अहसास उस वक़्त सबसे ज्यादा होता है जब,ख़ुदा न खास्ता घर में कोई बीमार पड़ जाता है,मरीज़ को देखभाल और तीमारदारी की ज़रुरत होती है.ऐसे में वो न सिर्फ प्यार से मरीज़ की तीमारदारी करती है बल्कि बिस्तर पर बीमार पड़े होने की बोरियत और अकेलेपन से भी बचाती है.जो एक महगी नर्स कभी नहीं कर सकती.
                        चाहे कोई कुछ भी कह ले,और कितनी भी दलीले क्यों न दे दी जाये लेकिन सच तो यह है कि,House Wives की अहमियत को Working Women के मुक़ाबले किसी भी लिहाज़ से न तो कम आकां जा सकता है और न ही उसकी शख्सियत को हलके में लिया जा सकता है.

अरशिया  ज़ैदी

16 Dec 2011

Dream(khuaab)

                                         ख़ुआब
                 बनाऊ मुकाम और पहचान अपनी 
                 ये एक ख़ुआब बचपन से मैंने है देखा, 
                 हो ख़ुद फैसला करने का, हौसला भी 
                 बनू एक अच्छा, सहारा मैं ख़ुद का .

                 तमन्ना है मुझको खुले आसमा की 
                 जहां मेरी परवाज़,हो इतनी ऊची, 
                 मैं खुद्द्दार हू मेरी दौलत यही है 
                 न मुझपे उठे नज़रे बेचारगी की.

                  अरशिया  ज़ैदी 

3 Dec 2011

Park

                                         पार्क 



 जिंदिगी के सफ़र में कुछ खुशनुमा यादें ऐसी होती है जो हमेशा हमारे साथ रहती है.मेरी,ऐसी ही एक याद उस पार्क से जुड़ी  हुई है,जहां मैं रोज़evening walk के लिए जाया करती थी,वहां बाक़ी लोगो के अलावा,आस पास की झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले गरीब बच्चे भी municipality के नल से पीने का पानी भरने आया करते थे.इन बच्चो में,किसी के तन पर पूरे कपड़े नहीं थे तो किसी के नन्हे पैर बिना चप्पल के थे ... लेकिन फिर भी,उनके माथे पर शिकन का  नामो- निशान  नहीं था.

पार्क में आते ही,ये बच्चे सबसे पहले अपने साथ लाये छोटे- बड़े डिब्बो को एक किनारे रख देते और दौड़ कर झूले पर चढ़ जाते....झूला झूलते,फिर पकड़न-पकडाई खेलते हुए एक दुसरे के पीछे भागते रहते. शाम ढलने से पहले,अपने साथ लाए डिब्बो में नल से,पीने का पानी भर के अपने घर ले जाते.जो डिब्बे पानी के वज़न से भारी हो जाते,और जिन्हें उनके छोटे- छोटे हाथ नहीं उठा पाते तो वो उन्हें घसीट कर अपने घर ले जाने की कोशिश करते थे .    



एक दिन पार्क में टहलते हुए मेरी नज़र इन बच्चो पर पड़ी ... मैंने देखा कि एक रिक्शा ठेला, जिस पर,इन बच्चो ने कई पानी से भरे छोटे-बड़े डिब्बे रख लिए है .... और वो ठेला ढलान भरे गेट से नीचे नहीं उतर पा रहा है.इन्ही बच्चो में से एक 8-10 साल का लड़का,उस रिक्शा ठेला को पार्क के ढलान भरे रास्ते से उतारने की कोशिश कर रहा है और पीछे से नन्हे नन्हे 5-6 बच्चे उस रिक्शे को धक्का लगा  रहे है ... मैं जल्दी से गयी और 'रिक्शा ठेला' को उस ढलान भरे रास्ते से उतरवा दिया ..... बच्चे मुस्कुरा दिए और   "थैंक यू आंटी" कह कर चले गए .
अब इन बच्चो को जब भी मदद की जरूरत होती .... वो मुझे आवाज़ लगा देते ....कभी कहते कि"आंटी... मेरा डिब्बा... ठेले पर रखवा दो" .......
तो कभी कहते कि आंटी ....."ठेला ढलान से नहीं उतर पा रहा है ..... आ कर धक्का लगवा दो न".
 इस तरह अब हमारी अच्छी-ख़ासी जान-पहचान हो गयी थी.
उस पार्क के सामने 'सबका बाज़ार' नाम का एक किराना स्टोर था जहां से मैं अक्सर घर की ज़रुरत का सामान खरीदा करती थी.इसलिए  कभी-कभी अपने साथ एक छोटा सा पर्स भी ले जाती थी.एक दिन उन्ही बच्चो में से, एक नन्ही से लड़की ने मेरे हाथ में पर्स देखा तो कहने लगी .....
 'आंटी पैसे दो न' ....'आंटी पैसे दो न' ... 
और ये कह कर मेरे पीछे पीछे चलने लगी ...... मैंने भी चलते चलते उसे जवाब दिया.
"नहीं अच्छे बच्चे पैसा नहीं मागते,हाँ .....अगर तुम्हे कुछ चाहिए तो बताओ .... मैं  तुम्हे खरीद दूंगी".
अभी हमारी बात-चीत चल ही रही थी कि उस लड़की के बाक़ी साथी भी आ गए .... और बड़े ग़ौर से हमारी बात सुनने लगे  ...... क्यूंकि मुझे उन की फरमाइश पूरी करनी थी इसलिए मैंने वहां खड़े सभी बच्चो से मुख़ातिब होकर उनसे अपनी फरमाइश बताने को कहा ....
अब इन बच्चो ने शर्माना शुरू कर दिया...  मेरे काफी पूछने पर इनमें से कुछ बच्चो ने तो"मैदा की बनी मठरियां" खाने की फरमाइश की लेकिन  कुछ बच्चे अभी भी खामोश खड़े थे ..... शायद कुछ कहना चाह रहे थे लेकिन झिझक की वजह से कह नहीं पा रहे थे.मैंने भी हार नहीं मानी और कोशिश करती रही.आखिर मेरी कोशिश रंग लायी और मुझसे जवाब में कहा गया कि -
"हमें नारंगी  रंग का पानी पीना है"यानि वो कोल्ड ड्रिंक पीना चाहते थे.
"चलो तुम्हारी फरमाइश पूरी करते है ."
अभी मैंने ये कहा ही था कि, सभी बच्चे खुश होते हुए पार्क के बाहर लगी खोके नुमा दूकान पर जा पहुचे.बच्चो ने जैसे ही वहां सजे शीशे के जार में मठरियां देखी .... तो चिल्ला पड़े.....और उस तरफ इशारा करते हुए बोले "वो रहीं मठरियां...... हमें तो वो खानी है".
मैंने दूकानदार से इन बच्चो को मठरियां देने को कहा .... दुकानदार ने पहले तो हैरानी से मेरी तरफ देखा और फिर मुस्कुरा कर सब बच्चो को मठरियां पकड़ा दी.मठरियां देते वक़्त उस दुकानंदार के चेहरे पर भी तसल्ली झलक आयी थी.
अब 'उन' बच्चो को अपनी फरमाइश पूरी होने का इन्तिज़ार था जिन्होंने "नारंगी रंग का पानी"(कोल्ड ड्रिंक)पीने की खुआइश ज़ाहिर की थी.लिहाज़ा अब,हम सब,सामने के किराना स्टोर में घुस गयी.चमचमाते स्टोर में जा कर पहले तो ये बच्चे ज़रा.... झिझके.फिर वहा सजी खाने पीने की चीजों को ताकने लगे.अचानक उनमे से एक बच्चे की नज़र फ्रिज में रखी कोल्ड ड्रिंक पर पड़ी .. जिसे देखते ही वो ख़ुशी से चिल्ला पड़ा ...
." अरे..... वो रही नारगी रंग की बोतल ...  मैं तो यही पियूँगा".
मैंने फ्रिज से उनकी पसंदीदा "नारंगी रंग की बोतलें "निकाल कर उनके हाथो में थमा दी 
बिल का पेमेंट करके, हम सब दूकान के बाहर आ गए.बाहर आते ही उन सब ने बिना देर किये कोल्ड ड्रिंक की बोतले खोल कर "नारंगी रंग का पानी"  पीना शुरू कर दिया.

उस लम्हा मैंने उन मासूम बच्चो के चहेरों पर  जो ख़ुशी देखी .   उसे देख कर मेरा दिल  सुकून के खुशनुमा अहसास से भर गया.ये खुशनुमा अहसास एक हसीन याद बन कर हमेशा मेरे साथ रहेगा .


 अरशिया ज़ैदी