पार्क
जिंदिगी के सफ़र में कुछ खुशनुमा यादें ऐसी होती है जो हमेशा हमारे साथ रहती है.मेरी,ऐसी ही एक याद उस पार्क से जुड़ी हुई है,जहां मैं रोज़evening walk के लिए जाया करती थी,वहां बाक़ी लोगो के अलावा,आस पास की झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले गरीब बच्चे भी municipality के नल से पीने का पानी भरने आया करते थे.इन बच्चो में,किसी के तन पर पूरे कपड़े नहीं थे तो किसी के नन्हे पैर बिना चप्पल के थे ... लेकिन फिर भी,उनके माथे पर शिकन का नामो- निशान नहीं था.
पार्क में आते ही,ये बच्चे सबसे पहले अपने साथ लाये छोटे- बड़े डिब्बो को एक किनारे रख देते और दौड़ कर झूले पर चढ़ जाते....झूला झूलते,फिर पकड़न-पकडाई खेलते हुए एक दुसरे के पीछे भागते रहते. शाम ढलने से पहले,अपने साथ लाए डिब्बो में नल से,पीने का पानी भर के अपने घर ले जाते.जो डिब्बे पानी के वज़न से भारी हो जाते,और जिन्हें उनके छोटे- छोटे हाथ नहीं उठा पाते तो वो उन्हें घसीट कर अपने घर ले जाने की कोशिश करते थे .
एक दिन पार्क में टहलते हुए मेरी नज़र इन बच्चो पर पड़ी ... मैंने देखा कि एक रिक्शा ठेला, जिस पर,इन बच्चो ने कई पानी से भरे छोटे-बड़े डिब्बे रख लिए है .... और वो ठेला ढलान भरे गेट से नीचे नहीं उतर पा रहा है.इन्ही बच्चो में से एक 8-10 साल का लड़का,उस रिक्शा ठेला को पार्क के ढलान भरे रास्ते से उतारने की कोशिश कर रहा है और पीछे से नन्हे नन्हे 5-6 बच्चे उस रिक्शे को धक्का लगा रहे है ... मैं जल्दी से गयी और 'रिक्शा ठेला' को उस ढलान भरे रास्ते से उतरवा दिया ..... बच्चे मुस्कुरा दिए और "थैंक यू आंटी" कह कर चले गए .
अब इन बच्चो को जब भी मदद की जरूरत होती .... वो मुझे आवाज़ लगा देते ....कभी कहते कि"आंटी... मेरा डिब्बा... ठेले पर रखवा दो" .......
तो कभी कहते कि आंटी ....."ठेला ढलान से नहीं उतर पा रहा है ..... आ कर धक्का लगवा दो न".
इस तरह अब हमारी अच्छी-ख़ासी जान-पहचान हो गयी थी.
उस पार्क के सामने 'सबका बाज़ार' नाम का एक किराना स्टोर था जहां से मैं अक्सर घर की ज़रुरत का सामान खरीदा करती थी.इसलिए कभी-कभी अपने साथ एक छोटा सा पर्स भी ले जाती थी.एक दिन उन्ही बच्चो में से, एक नन्ही से लड़की ने मेरे हाथ में पर्स देखा तो कहने लगी .....
'आंटी पैसे दो न' ....'आंटी पैसे दो न' ...
और ये कह कर मेरे पीछे पीछे चलने लगी ...... मैंने भी चलते चलते उसे जवाब दिया.
"नहीं अच्छे बच्चे पैसा नहीं मागते,हाँ .....अगर तुम्हे कुछ चाहिए तो बताओ .... मैं तुम्हे खरीद दूंगी".
अभी हमारी बात-चीत चल ही रही थी कि उस लड़की के बाक़ी साथी भी आ गए .... और बड़े ग़ौर से हमारी बात सुनने लगे ...... क्यूंकि मुझे उन की फरमाइश पूरी करनी थी इसलिए मैंने वहां खड़े सभी बच्चो से मुख़ातिब होकर उनसे अपनी फरमाइश बताने को कहा ....
अब इन बच्चो ने शर्माना शुरू कर दिया... मेरे काफी पूछने पर इनमें से कुछ बच्चो ने तो"मैदा की बनी मठरियां" खाने की फरमाइश की लेकिन कुछ बच्चे अभी भी खामोश खड़े थे ..... शायद कुछ कहना चाह रहे थे लेकिन झिझक की वजह से कह नहीं पा रहे थे.मैंने भी हार नहीं मानी और कोशिश करती रही.आखिर मेरी कोशिश रंग लायी और मुझसे जवाब में कहा गया कि -
"हमें नारंगी रंग का पानी पीना है"यानि वो कोल्ड ड्रिंक पीना चाहते थे.
"चलो तुम्हारी फरमाइश पूरी करते है ."
अभी मैंने ये कहा ही था कि, सभी बच्चे खुश होते हुए पार्क के बाहर लगी खोके नुमा दूकान पर जा पहुचे.बच्चो ने जैसे ही वहां सजे शीशे के जार में मठरियां देखी .... तो चिल्ला पड़े.....और उस तरफ इशारा करते हुए बोले "वो रहीं मठरियां...... हमें तो वो खानी है".
मैंने दूकानदार से इन बच्चो को मठरियां देने को कहा .... दुकानदार ने पहले तो हैरानी से मेरी तरफ देखा और फिर मुस्कुरा कर सब बच्चो को मठरियां पकड़ा दी.मठरियां देते वक़्त उस दुकानंदार के चेहरे पर भी तसल्ली झलक आयी थी.
अब 'उन' बच्चो को अपनी फरमाइश पूरी होने का इन्तिज़ार था जिन्होंने "नारंगी रंग का पानी"(कोल्ड ड्रिंक)पीने की खुआइश ज़ाहिर की थी.लिहाज़ा अब,हम सब,सामने के किराना स्टोर में घुस गयी.चमचमाते स्टोर में जा कर पहले तो ये बच्चे ज़रा.... झिझके.फिर वहा सजी खाने पीने की चीजों को ताकने लगे.अचानक उनमे से एक बच्चे की नज़र फ्रिज में रखी कोल्ड ड्रिंक पर पड़ी .. जिसे देखते ही वो ख़ुशी से चिल्ला पड़ा ...
." अरे..... वो रही नारगी रंग की बोतल ... मैं तो यही पियूँगा".
मैंने फ्रिज से उनकी पसंदीदा "नारंगी रंग की बोतलें "निकाल कर उनके हाथो में थमा दी
बिल का पेमेंट करके, हम सब दूकान के बाहर आ गए.बाहर आते ही उन सब ने बिना देर किये कोल्ड ड्रिंक की बोतले खोल कर "नारंगी रंग का पानी" पीना शुरू कर दिया.


उस लम्हा मैंने उन मासूम बच्चो के चहेरों पर जो ख़ुशी देखी . उसे देख कर मेरा दिल सुकून के खुशनुमा अहसास से भर गया.ये खुशनुमा अहसास एक हसीन याद बन कर हमेशा मेरे साथ रहेगा .
अरशिया ज़ैदी



अब इन बच्चो को जब भी मदद की जरूरत होती .... वो मुझे आवाज़ लगा देते ....कभी कहते कि"आंटी... मेरा डिब्बा... ठेले पर रखवा दो" .......
तो कभी कहते कि आंटी ....."ठेला ढलान से नहीं उतर पा रहा है ..... आ कर धक्का लगवा दो न".
इस तरह अब हमारी अच्छी-ख़ासी जान-पहचान हो गयी थी.
उस पार्क के सामने 'सबका बाज़ार' नाम का एक किराना स्टोर था जहां से मैं अक्सर घर की ज़रुरत का सामान खरीदा करती थी.इसलिए कभी-कभी अपने साथ एक छोटा सा पर्स भी ले जाती थी.एक दिन उन्ही बच्चो में से, एक नन्ही से लड़की ने मेरे हाथ में पर्स देखा तो कहने लगी .....
'आंटी पैसे दो न' ....'आंटी पैसे दो न' ...

"नहीं अच्छे बच्चे पैसा नहीं मागते,हाँ .....अगर तुम्हे कुछ चाहिए तो बताओ .... मैं तुम्हे खरीद दूंगी".
अभी हमारी बात-चीत चल ही रही थी कि उस लड़की के बाक़ी साथी भी आ गए .... और बड़े ग़ौर से हमारी बात सुनने लगे ...... क्यूंकि मुझे उन की फरमाइश पूरी करनी थी इसलिए मैंने वहां खड़े सभी बच्चो से मुख़ातिब होकर उनसे अपनी फरमाइश बताने को कहा ....
अब इन बच्चो ने शर्माना शुरू कर दिया... मेरे काफी पूछने पर इनमें से कुछ बच्चो ने तो"मैदा की बनी मठरियां" खाने की फरमाइश की लेकिन कुछ बच्चे अभी भी खामोश खड़े थे ..... शायद कुछ कहना चाह रहे थे लेकिन झिझक की वजह से कह नहीं पा रहे थे.मैंने भी हार नहीं मानी और कोशिश करती रही.आखिर मेरी कोशिश रंग लायी और मुझसे जवाब में कहा गया कि -
"हमें नारंगी रंग का पानी पीना है"यानि वो कोल्ड ड्रिंक पीना चाहते थे.
"चलो तुम्हारी फरमाइश पूरी करते है ."
अभी मैंने ये कहा ही था कि, सभी बच्चे खुश होते हुए पार्क के बाहर लगी खोके नुमा दूकान पर जा पहुचे.बच्चो ने जैसे ही वहां सजे शीशे के जार में मठरियां देखी .... तो चिल्ला पड़े.....और उस तरफ इशारा करते हुए बोले "वो रहीं मठरियां...... हमें तो वो खानी है".
मैंने दूकानदार से इन बच्चो को मठरियां देने को कहा .... दुकानदार ने पहले तो हैरानी से मेरी तरफ देखा और फिर मुस्कुरा कर सब बच्चो को मठरियां पकड़ा दी.मठरियां देते वक़्त उस दुकानंदार के चेहरे पर भी तसल्ली झलक आयी थी.
अब 'उन' बच्चो को अपनी फरमाइश पूरी होने का इन्तिज़ार था जिन्होंने "नारंगी रंग का पानी"(कोल्ड ड्रिंक)पीने की खुआइश ज़ाहिर की थी.लिहाज़ा अब,हम सब,सामने के किराना स्टोर में घुस गयी.चमचमाते स्टोर में जा कर पहले तो ये बच्चे ज़रा.... झिझके.फिर वहा सजी खाने पीने की चीजों को ताकने लगे.अचानक उनमे से एक बच्चे की नज़र फ्रिज में रखी कोल्ड ड्रिंक पर पड़ी .. जिसे देखते ही वो ख़ुशी से चिल्ला पड़ा ...
." अरे..... वो रही नारगी रंग की बोतल ... मैं तो यही पियूँगा".
मैंने फ्रिज से उनकी पसंदीदा "नारंगी रंग की बोतलें "निकाल कर उनके हाथो में थमा दी
बिल का पेमेंट करके, हम सब दूकान के बाहर आ गए.बाहर आते ही उन सब ने बिना देर किये कोल्ड ड्रिंक की बोतले खोल कर "नारंगी रंग का पानी" पीना शुरू कर दिया.


उस लम्हा मैंने उन मासूम बच्चो के चहेरों पर जो ख़ुशी देखी . उसे देख कर मेरा दिल सुकून के खुशनुमा अहसास से भर गया.ये खुशनुमा अहसास एक हसीन याद बन कर हमेशा मेरे साथ रहेगा .
अरशिया ज़ैदी
1 comment:
very touching...
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