ख़ुआब
बनाऊ मुकाम और पहचान अपनी
ये एक ख़ुआब बचपन से मैंने है देखा,
हो ख़ुद फैसला करने का, हौसला भी
बनू एक अच्छा, सहारा मैं ख़ुद का .
तमन्ना है मुझको खुले आसमा की
जहां मेरी परवाज़,हो इतनी ऊची,
मैं खुद्द्दार हू मेरी दौलत यही है
न मुझपे उठे नज़रे बेचारगी की.
अरशिया ज़ैदी
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