1 Jan 2012

Shayari



                          मशाल

बदलते साल में पिछले बरस के देखे हुए 
अधूरे खुआब हक़ीक़त में ढल भी सकते है.
 अगर लगन हो,य़की और प्यार का जज़्बा 
तुम्हारे सामने पत्थर पिघल भी सकते है.
                
 मशाल इल्मो जुनूं की जला के हम सब लोग 
 कुरीतियों की फनो को कुचल भी सकते है. 
  गरीब बस्ती में फैले हुए अंधेरो को 
 चमकते इल्म के सूरज निगल भी सकते है. 

हमारे प्यार की झप्पी से ही फ़क़त ऐ दोस्त 
सिसकते भूख से बच्चे बहल भी सकते है.  
अगर हम मिलके कुछ कुर्बानियों का अहद कर ले 
तो इस समाज की किस्मत बदल भी सकते है.

वो तपती रेत,अगर कर्बला की जहन में हो 
दहकती आग पे इंसान चल भी सकते है.
छिपा है दर्द हर एक क़ेह्क्हे के दामन में 
हर एक आँख से आंसू निकाल भी सकता है.
             
नाकामयाबी को जोड़ो न अपनी क़िस्मत से 
 सितारे चाल को अपनी बदल भी सकते है. 
 तू अपने हाथो की मेहनत पे ऐतबार तो कर 
 के तेरे हाथ की रेखा बदल भी सकते है. 
  
अरशिया  ज़ैदी

2 comments:

Ali.Scorp said...

"nakamiyaabi ko jodo na apni kismat se....
sitare chaal ko apni badal bhi skte hain..."

waah rainy baaji.. awesome :)

Ali.Scorp said...

"nakamiyaabi ko jodo na apni kismat se....
sitare chaal ko apni badal bhi skte hian... "
waah rainy baaji.. awesome :)