15 Feb 2012

Are We Civilized ?

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                               क्या हम civilized हैं ?

मॉरिशस के साफ़-सुथरे ख़ूबसूरत बीच पर किसी tourist ने सिगरेट पी कर फेक दिया था... जिसे वहाँ के लोगो ने फौरन नोटिस किया और उस बन्दे को उसकी ग़लती का अहसास कराते हुए सिगरेट का टुकड़ा वहाँ न फेकने की हिदायत की.ये क़िस्सा बताया....मेरी दोस्त अनु ने,जो हाल ही में मॉरिशस घूम कर आयी है.
दूसरी तरफ अब ज़रा अपने देश का हाल सुनिए...जिसे अभी हाल ही में दुनिया की जानी मानी टॉक शो होस्ट Oprah Winfrey ने अपने  भारत दौरे में महसूस किया,उन्हें ये देख कर बेहद हैरानी हुई की यहाँ पर कुछ लोग सड़को पर रेड लाइट  होने पर भी  नहीं  रुक रहे थे और traffic rules को ताख़ में रख कर अपनी-अपनी गाडियों को दौड़ाए जा रहे थे.
एक भारतीय,एक हिन्दुस्तानी होने के  नाते ये सुन कर मेरा सर तो शर्म से झुक गया.कही कुछ था जो मुझे अपने गिरेबान में झाकने को मजबूर कर रहा था. 
यह Civic Sense, ये तमीज़ हम हिन्दुस्तानियों में क्यों नहीं है ?क्यों हमारे तौर तरीके ऐसे है जिससे दूसरो को परेशानी होती है ... और हमारे सर पर जूं भी नहीं रेंगती . 
हम पब्लिक प्लेसेस और सडको पर कूड़े-करकट के ढेर जमा करने में ज़रा भी नहीं हिचकिताते.बड़े बड़े डस्टबिन रखे होने के बावजूद फलो के छिलके,पोलिथीन बैग,खाने-पीने की चीजों के पैकेट,जहा खड़े होते है वही बड़ी लापरवाही से फेक देते है और तो और,साफ़ -सुथरी दीवारें हमें अच्छी नहीं लगती इसलिए थूक और पान की पीको के निशान से,साफ़ दीवारों को गन्दा करने में भी हम पीछे नहीं रहते .  
 
सब जानते है की पोलीथिन बैग नालियों में डालने से नालियां चोक हो जाती है जिसकी वजह से गन्दा पानी सड़को पर बहने लगता है और लोगो को उस गंदे पानी के ऊपर से फलांग कर जाना पड़ता है.लेकिन फिर भी लोग इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं करते.
हमारी सोच ऐसी हो गयी है कि बस हमें कोई दिक्क़त   नहीं होनी चाहिए.बाकी किसी को हमारे तौर तरीक़े से कोई परेशानी हो...तो हमारी बला से.
सफाई करने वाले आयेंगे...वही साफ़ करेंगे.सारी उम्मीदें सरकार से ही है. . भला क्यों ? आधी ज़िम्मेदारी तो हमारी भी बनती है.अगर सफाई करवाना सरकार का काम है तो गन्दगी न फैलाते हुए सफाई को बनाये रखना हमारी ज़िम्मेदारी है.सरकार और हम मिलकर काम करेंगे,तभी तो बात बन पायेगी.
टिकेट काउंटर हो या बुकिंग विंडो,कुछ लोग क्यू में खड़े होकर अपना नंबर आने का, ज़रा सा भी इन्तिज़ार नहीं करना चाहते,लेकिन अपना काम वो सबसे पहले हो जाने की उम्मीद ज़रूर करते है.इसी बेसब्री और बत्तामीज़ी के चलते जरा सी देर में,हालात बिगड़ जाते है और हाय-तौबा मच जाती है.पुलिस के लिए हालात पर क़ाबू पाना मुश्किल हो जाता है और जनता परेशान होती है वो अलग.

हमारे देश में बेहतरीन Tourism होते के बाद भी हमारी Tourism- Industry घाटे में जाती जा रही है.वजह सामने है ....अगर  हम  घर आये मेहमान के साथ अच्छा बर्ताव नहीं  करेंगे तो हमारे घर कौन आएगा ?शायद हम "अतिथि देवो भवा:"का रिवाज भुला बैठे है .कई बार टूरिस्ट हमारे बारे में बहुत बुरा Impression ले कर वापस जाते है.कुछ बेहूदा लोगो की वजह से इन मेहमानों को कई परेशानीयो का सामना करना पड़ जाता  है.... कभी  सामान चोरी हो जाता है तो कभी उनके साथ बदसुलूकी और धोखा-धडी हो जाती है. जो हर हिन्दुस्तानी को शर्म सार करने के लिए काफी है .
कुछ इसी तरह की परेशानिया हमें अपने घर और पास-पड़ोस में भी झेलने को मिलती रहती है.पड़ोसी कोई भी चीज़ ये कह कर ले जायेंगे... कि काम ख़त्म होने के बाद वापस कर देंगे  .... लेकिन उनका 'वो कल' कभी नहीं आता.भले ही आप को आपकी चीज़ की कितनी भी ज़रुरत हो,लिहाज़ और शराफत के मारे आप,अगले बन्दे की मदद करने की नियत से उससे ' न' नहीं कहेंगे और वो आपको वक़्त पर आपकी चीज़ लौटाएगा - नहीं......आखिर परेशान होकर,आपको ही अपनी चीज़ वापस लेने पड़ोसी के पास जाना पड़ेगा. 
    पढ़ने के शौक़ीन लोग अपने पास अच्छी किताबो  का collection रखना पसंद करते है.जिन्हें अक्सर दोस्त लोग पढने के लिए मांग कर ले जाते है.किताबे देना किसी को बुरा नहीं लगता,बल्कि अच्छा लगता है.यहाँ तक तो बात ठीक है,लेकिन बुरा तब लगता है जब आपकी किताब कोई मांग कर ले जाये और पढ़ कर वापस करने की कोई सुध ही न ले,और बार बार तकाज़ा करने पर जब किताब वापस करे तो उस पर या तो हल्दी-तेल के धब्बे लगे हो,या फिर किताब फटी हुई हो.तब ये ज़रूर लगता है की शायद हमने इस बन्दे को किताब दे कर गलती कर दी.और ये ग़लती अब दुबारा नहीं करनी है.
कहते है ज़रुरत पर जो काम आ जाये वो आपका सच्चा साथी होता है और अगर ज़रुरत पैसे की हो,और आपका कोई हमदर्द आपकी उस ज़रुरत को पूरा कर दे तो आप इसे क्या कहेंगे? .....आप उसके अहसान मंद होंगे न .......और दिल ही दिल में जल्दी से जल्दी उसके पैसे लौटने का इरादा करेंगे!
 कई बार हक़ीक़त इसके उलट हो जाती है जनाब .... कुछ लोग पैसे लेने के बाद उसे लौटना याद नहीं रखते, और आज-कल पे टालते रहते है.जबकि अपनी दुनिया भर की सारी ज़रूरते पूरी करते रहते है.उधार देने वाला शख्स तकाज़ा करने में शर्म महसूस  करता है और सोचता  रहता है की ...कब मेरे पैसे वापस मिले और  मैं अपने रुके हुए ख़र्च पूरे करू .

कुछ लोगो का celebration तब तक पूरा नहीं होता जब तक वो अपने घर का शोर लाउड-स्पीकर के ज़रिये पड़ोसियों को न सुनवा दे.किसी बीमार को लाउड-स्पीकर के शोर से तकलीफ हो रही हो,या किसी की नींद खराब हो रही हो उन्हें इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता.अरे भई ...आपके घर कोई celebration है बहुत अच्छी बात है,यक़ीनन आप से प्यार करने वाले आपके दोस्त और रिश्ते दार आप की ख़ुशी में शामिल होंगे क्या इतना काफी नहीं है आपके लिए? ...जो आप लाउड -स्पीकर के शोर से लोगो के कान के परदे फाड़ देने पर तुले हुए है.
    

इस तरह के खट्टे -मीठे तजुरबो से हम सभी को आये दिन दो चार होना पड़ता है.दूसरो में Civic Sense जागने का इन्तिज़ार करेंगे तो सिर्फ इन्तिज़ार ही करते रह जायेंगे. क्यों न इस से निपटने के लिए पहल अपने ही घर से, और अभी की जाये? ...   क्यों न खुद इस बात का ध्यान रक्खा जाये की हमारा कोई भी तौर-तरीक़ा दूसरो की परेशानी का सबब न बन सके और हम अपना देश,अपना शहर, अपनी गलियों को साफ़ -सुथरा बनाये रखने की ज़िम्मेदारी को बखूबी पूरा कर सके. 

अरशिया  ज़ैदी  






















  



















2 comments:

Anuja said...

....Gud Didi.... Its very true...we have to change ourselves, if we want to change our society....

hina said...

Good job...keep posting.