एक याद बचपन की
आज कुछ फुरर्सत के लम्हे मेरे पास हैं .....सोच रही हूँ की यादो के झरोको से अपने बचपन में झाँकू .... बचपन में झाकते ही कई खट्टी-मीठी यादें,किसी किताब के पन्नो की तरह मेरी नजरो के सामने से गुज़रने लगती है.एक यादगार पन्ना, जहां आकर मेरी सोच कुछ ठहर सी जाती है ,और मुझे उस वक़्त में वापस ले जाती है जब मैं तक़रीबन दस साल की और मेरा भाई रुफी आठ साल का रहा होगा.
हर भाई-बहन की तरह हम भी बहुत झगड़ा करते थे.बात तू-तू मै-मै से शुरू हो कर अक्सर मार-पिटाई पर जाकर ख़त्म होती थी.मेरा प्यारा शैतान-भैया रुफी जो उम्र में मुझसे दो साल छोटा ज़रूर था लेकिन हर बार बाज़ी मार ले जाता था.हमारी लड़ाईयों से अगर कोई सबसे ज्यादा परेशान था .... तो वो थीं हमारी मम्मी.वो मुझे बार बार भइया से दूर रहने और लड़ाई न करने की हिदायत देती लेकिन मैं उनकी एक न सुनती.....और बार-बार झगड़ा करने के बाद भी अपने भैया के आस-पास ही रहना पसंद करती .... शायद इसलिए .....की मुझे उसके बिना ज़रा भी चैन नहीं था और मैं उससे ज्यादा देर तक नाराज़ भी नहीं रह सकती थी.
एक शाम ... घर में सब लोग किसी पार्टी में जाने की तैयारी कर रहे थे. मम्मी ने हमेशा की तरह मुझे और रुफी को पहले ही तैयार कर दिया था.खेल-खेल में हम दोनों की लड़ाई हुई और बात घूसों-लातो तक पहुच गयी.उस लड़ाई में मेरा पडला भरी रहा और मैने रुफी की पिटाई कर ली.

उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ था .... दरवाज़ा बंद रखने के लिए मैंने अपने दोनों हाथो की ताक़त लगा रखी थी ....दरवाज़े पर लगी चटख़नी भी कमज़ोर थी. 2-3 बार जोर से धक्का देने पर खुल जाती थी.उधर दरवाज़ा न खुल पाने की वजह से रुफी का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था ....वो दरवाज़े को जोर जोर से धक्का दे रहा था.अचानक उसने चिल्ला कर कहा ..... मेरी उंगली पिच गयी"....रेनी जल्दी से दरवाज़ा खोलो "..मैंने दिल ही दिल में सोचा ....
"अच्छा बच्चू....फिर एक बार तुम मुझे बेवकूफ़ बना रहे हो .....लेकिन इस बार मैं तुम्हारी बातो में नहीं आने वाली".
ये सब बातें दिल ही दिल में सोचते हुए मैंने और कस के दरवाज़ा बंद कर लिया.
अभी मैं अपने ख़यालो में उलझी हुई थी की,बाहर से मेरी अतिया फुप्पो की आवाज़ आयी ....."रेनी जल्दी से दरवाज़ा खोलो....... रुफी की उंगली सच में, दरवाज़े के बीच में आ गयी है ."ये सुनते ही मैंने झट से दरवाजा खोल दिया और सामने जो देखा......उसे देख कर मेरे तो होश उड़ गए ....मेरा प्यारा भैया दर्द से बेहाल हो रहा था,उसका भोला-भाला मासूम चेहरा आँसूओ से तर था.उंगली से बुरी तरह खून बह रहा था,खाल आपस में चिपक गयी थी और नाख़ून उंगली से अलग हो चुका था.
इतने में शोर सुन कर मम्मी बाहर आ गयी,और रुफी की यह हालत देख सन्न रह गयी ...लेकिन जल्दी ही उन्होंने खुद को सभाल लिया.बिना घबराये रुफी के हाथ पर डिटोल लगा कर पट्टी बाधी और मुझे पड़ोस में रहने वाले अज़ीज़ मामू को बुलाने भेज दिया.
अज़ीज़ मामू एक बेहद नेक दिल और हमदर्द इंसान थे,जिन्हें हम प्यार से 'मामू' कहते थे.मैने जल्दी-जल्दी उन्हें सारी बात बतायी.वो घर आ गए और रुफी को फ़ौरन डॉक्टर चड्डा के पास ले जाकर मरहम पट्टी करवा दी.
घर में सब मुझसे बेहद नाराज़ थे.उसके बाद जो मेरी क्लास लगी है...उसके बारे में क्या बताऊ ? रुफी हमारे ताया-जानी(बड़े अब्बा) का बहुत लाडला भतीजा था. अपने लाडले की ये हालत देख कर ताया-जानी को मुझ पर बहुत ग़ुस्सा आया था ... मुझे अभी भी याद है ... उस वक़्त वो कघी से अपने बाल बना रहे थे... जैसे ही उन्होंने मुझे देखा... उन्हें और ग़ुस्सा आ गया और उन्होंने उसी कघी से मेरी पिटाई कर दी थी,उस बेचारे कंघे को भी थोड़ी बहुत चोट आयी थी और वो टूट गया था.
ऐसा लग रहा था की शायद भेड़िया आया-भेड़िया आया,वाली कहानी सच हो गयी थी.खेल ही खेल में एक बड़ा हादसा हो गया था,जिसकी वजह से मेरे भैया को बहुत दर्द सहना पड़ा था.जो कुछ हुआ वो अनजाने में हुआ ... लेकिन बेहद बुरा हुआ था..
रुफी की उंगली को ठीक होने में कई दिन लग गए थे...उसकी उंगली तो ठीक हो गयी लेकिन उस उंगली पर पूरा नाख़ून कभी न आ सका.जिसको देख कर आज भी मुझे अफ़सोस होता है..
रुफी की उंगली को ठीक होने में कई दिन लग गए थे...उसकी उंगली तो ठीक हो गयी लेकिन उस उंगली पर पूरा नाख़ून कभी न आ सका.जिसको देख कर आज भी मुझे अफ़सोस होता है..
अरे आप किस सोच में डूब गए ....क्या आप को भी अपने बचपन की कुछ शरारते याद आ गयी ? अगर आप ये सोच रहे है कि इस हादसे के बाद हम सुधर गए होंगे और हमने झगड़ा करना बंद कर दिया होगा ... तो आप गलत समझ रहे है.उसके बाद भी हम झगड़ा करते रहे..... आज भी करते है लेकिन थोड़ी तमीज़ से !!!
अरशिया ज़ैदी
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