1 Aug 2012


     दूसरे  सफ़र  की   हसीं  शुरुवात 



   आख़िरकार  कल  उसने फैसला ले  ही लिया .... अपनी  घुटन भरी  शादी  के  रिश्ते से आज़ाद होने का ... और  छोड़ आयी सब कुछ  पीछे ..... बहुत पीछे. कल  ये  हिम्मत  दिखाई   मेरी एक बहुत प्यारी दोस्त  किरन ने... जिसने  अपनी  सात  साल  शादी  को ..ख़त्म  कर  दिया.
 हर किसी की  तरह  मुझे  भी  उसकी शादी  के टूटने  का अफ़सोस था....लेकिन इससे  कही  ज़्यादा  ख़ुश  थी  मैं  उसके लिए... और  उसके इस  फैसले से सहमत  भी  थी ... क्योकि  मैं  उसके  दर्द  की  गवाह  बनी  थी, मैंने  उसे  हर  रोज़  दिल  ही  दिल में  घुटते हुए  देखा  है..... बिना  आँसू  बहाये  रोते  हुए देखा है. 
 कल  जब  मैं  किरन  से  मिली  तो  उसे  एक लम्बे  अरसे  के  बाद   उसका  चेहरा खिला  हुआ  देखा,  उदासी  भरी  मुस्कराहट  के  बजाये  दिल  से  मुस्कुराते हुए देखा  उसे ... ऐसा लगा  जैसे  बहुत  हल्का  महसूस  कर रही  हो  वो . और   दुबारा अपनी  ख़ूबसूरत  जिंदिगी  को  नए सिरे  से शुरू  करने को  तैयार हो  .
ज़ज्बाती  तौर  पर उसे  इतना फिट  देख  कर  अच्छा लगा था मुझे . ये सच  है  की  ये  ख़ूबसूरत  जिंदिगी  हमें  बार- बार नहीं मिलती..... एक बार ही मिलती है.  और सबसे  कीमती  चीज़  होती है  वक़्त.... अगर हमने  वक़्त  रहते  अपने  रिश्तो की  अहमीयत को  नहीं   समझा  तो समझ लीजिये ... की  रिश्ते की उम्र ज्यादा  नहीं  है.
जब कोई अपनी  शादी   को ख़त्म करने का फैसला लेता है ....तो इसका  मतलब है .... की  अब  रिश्ते  के बेहतर  होने  की  कोई  उम्मीद नहीं  रह गयी है ....उसको ,क्योकि  कोई  भी ये  नहीं  चाहता की, उसकी  शादी  टूटे  या  बसा - बसाया  घर  बर्बाद  हो  जाए.अगर  किसी का  घर  ही ना बसा हो! .... रिश्ते में  महसूस  करने  के लिए कुछ  बचा  ही  न हो  तो  ऐसे  हालात में  रास्ते  अलग कर  लेना  ही बेहतर  होता है। जिस  वक़्त  भी ये अहसास   हो जाए ... की   अब  सर  से  पानी  ऊपर जाने लगा है ...और अब इससे  ज्यादा  सहना  हमें  कही का  नहीं   छोड़ेगा  तो बस  वही   थोड़ा   ठहर जाने की  ज़रुरत है  और  रुक  कर  रास्ता  बदल लेना  ही  समझदारी  है.
     आज   भी  हमारे  समाज  में  किसी  की  शादी  टूट  जाने  की  ख़बर  से  लोगो के  माथे  की त्योंरिया  चढ़  जाती  है.  और  हम  लोग  क्या  कहेंगे .... इस  डर  से... कई  बार  बेमायने  हो  चुके रिश्ते  को  ढोते  रहते  है.  अगर  आप  एक  औरत  है , तो  तरह - तरह सवाल  पूछे  जाने  लगते है ,आपके  अपनी  शादी  को  ख़त्म करने के  फैसले  को  ग़लत  ठहराया जाने  लगता  है ......लोग  अपने -अपने नज़रिए से  रिश्ते  को  दुबारा  जिंदा  करने के  तरीक़े  सुझाते  है , .आपको  अकेले पन  से भी  खौफ़  दिलाया  जाता  है ,आपको  समझाया  जाता है  की  अकेले  रह  कर जिंदिगी नहीं  कटती . बुढ़ापे  में  आपका  ख़याल कौन  रखेगा ? .
और तब एक सवाल  ज़हेन  में  बड़ी  शिद्दत  से  उभरता है  की  अगर  शादी  के बाद  भी  आप बेहद   तन्हा महसूस  करते  हो, उसके साथ होने के   बावजूद  भी  आपको ज़ज्बाती  तौर पर  ये न  महसूस हो सके ... की आपका  हम सफ़र  आप के साथ  है .... तब  उसका  क्या ?. 
क़ब्र  का हाल  तो मुर्दा  ही जानता है  इसलिए तब बिना  confuse  हुए  ये सोचना  होता है  की  अगर हमने  अपने  बारे  में कम  और  लोगो के बारे में  ज्यादा सोचा  तो  हम  अपने दर्द  से कभी  बाहर  नहीं  निकल  पायेंगे .

जब  हम  ज़ज्बाती   तौर  पर  बुरे  दौर से  गुज़र  रहे  होते   है ..तो कई बार  दिलो  दिमाग में  एक अजीब  सी  कशमकश  चलती रहती है .... जिससे  निकलना  अपने आप में एक  challenge   होता  है .आपके  हालात  के बारे में आपसे ज्यादा  बेह्तर कोई  और नहीं जान सकता. इसलिए  फैसला  भी आपको ही करना  होगा . हमें  इस  बात  को  भी  समझना  होगा  की  हमारे  दर्द  में  होने  पर  लोग  हमसे  हमदर्दी तो रख  सकते है .... पर  हमारा  दर्द  नहीं  बाँट सकते....अपने  हिस्से  का दर्द  हमें  ही  सहना  है  इसलिए बेह्तर है ... थोडा  सा अपने बारे  में  सोचते  हुए ..... हम  वो करे जिस के लिए  हमारा  दिल  और ज़मीर गवाही  देता है .
जिंदिगी  बेहद   ख़ूबसूरत  है  बस एक मकसद ... एक मायने मिलने की देर होती है ... जिस  दिन जिंदिगी  का  मक़सद मिल  जाता है ...वही से बात बननी शुरू हो जाती है.  और  तब हमें  जिंदिगी  बहुत सारे  मौकों पर  सच्ची  ख़ुशी  का अहसास  कराती है 
 जिंदिगी ना मिलेगी  दोबारा .....   ये  चार लफ्जों की  छोटी सी लाइन  मुझे बहुत  पसंद  है  देखा  जाये  तो  इसमें  जिंदिगी का  हसीन सच  छुपा है जो  हमें  बताता  है  की  जिंदिगी  सिर्फ  एक  बार  ही  मिलती  है  जिसे  हमें  भरपूर  जीना  चाहिए  नहीं  तो   इसी पछतावे  में  उम्र गुज़र जाएगी....की ."काश  हमने  अपनी जिंदिगी  को  पहले ही जीना  सीख  लिया होता". हमें  पहले अपने -आप को खुश रखना  सीखना  होगा  तब जाकर  हम  दूसरो को  ख़ुशी दे पायेंगे.

मैंने  कही  पढ़ा था  और शिद्दत  से  ये महसूस भी किया है  की  अगर  हम  किसी के लिए अपने दिल में  कड़वाहट और गुस्सा रखते है.... तो  उसका सबसे ज्यादा  बुरा  असर हम  पर पड़ता है... हम  अंदर  ही  अंदर  जलते  रहते है  और  गुस्से और  नाराजगी  की  ये  आग  अगले  बन्दे  को बाद   में जलाती है  ... पहले आप जल जाते है .इसलिए  जिन्होंने  आपको  चोट  पहुचाई  ..... आपका बुरा किया...  उन्हें  माफ़ कर दे... उनके लिए अपने दिल में कोई  कड़वाहट  न  रखें , उनकी बेहतरी  के लिए  दुआ  करे और  उनके  बारे  में  अच्छा ही  सोचे. तब आप  देखिये ... आपके  दिल  को  कितना  सुकून मिलेगा और  कितनी  अच्छी  नींद आएगी.
यक़ीन  कीजिये  यही  से  आपकी  जिंदिगी  का  अगला  बेहद  हसीं  सफ़र शुरू होगा ....जिसका लुत्फ़  आप  हर लम्हा  उठा  सकेंगे  .
अरशिया ज़ैदी  
 

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